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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
aaaaaaణమంచిదించింది జంటకాణంలాంటణండాలంపంటలు
समण-सासण-पहाविगा-अमर-साहिगा-पुफ्फवई
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-डॉ0 उदयचंद्र जैन, उदयपुर GROACCO R DING GORGEOGRE GORGEOGGEOGGERG000000000
अट्ठ-गुण-सम्म-जुत्तं पलयं पउरो वि विग्घ-संघाओ। तस्स उसहस्स णमामि कय-कुवियप्प-णासणो अहं ।।१।। तं जिणवरं वंदे वि जस्स केवलणाणेण पयासिओ। तिहुवण-लोगं णिच्चं अंतिम-तित्थयरं संमई ।।२।। अमर-खेयर-वंदियं भव-भयच्छेय-करण-संजुत्ता। सासय कल्लाण-जुत्ता सव्व-मोक्ख-मग्गरय मुणीणं ॥३॥ सयल-णाण-विण्णाण-वेत्ता जिणवसह सासणरक्खा ।
सण्णाण-कंठाभरण-गणाहीसाणं थोमि अहं ।।४॥ समण-सासण-पहा विगा-अमर साहिगा
समणसंघ परंपरा अइ-पुरा विज्जए अस्सि लोए। चहुविह-तित्थ-ठावणा भगवय-महावीरस्स पच्छा ।।५।। सु-सुय-पहाण-सीसा-वि जाआ गोयम-गणहरा साहुणो । देदिव्वमाण-णक्खयव्व आगम कुसला बहुणाणी ।।६।। चन्दणविव सुरहीओ चंदणबाला-पमुह-समणी जाआ। करलुंच-केसरासी अंतेवासी महावीरस्स ।।७।। वीर णिव्वाण-वीए सदीए महमंती सगडाल-सुआ। अज्ज-थूलभद्द-सत्त बहिणी जक्ख-जक्खदिण्णाई ।।८।। अज्ज दिक्खं णेऊण गुण-गण-सामिद्धि हेउणो णिच्च । मोह-खोह-हीणठं सु-झाण-मग्गम्मि रआ-सआ ।।६।। समय-समयम्मि देसे बह-सुभ-बहु-णाणी-आगम-कूसला। चरिय-
णिट्ठ-सज्झायी धम्मसद्दा वि समणी जाया ॥१०॥
२५६ | तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन
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