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साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
रागिनियों पर आधृत ये भजन आज भी जीवित हैं और कल भी जीवित रहने की अर्थमत्ता इनमें विद्यमान है । यही कवयित्री की सबसे बड़ी विशेपता है ।
इस प्रकार कवयित्री द्वारा काव्य कृतियों का संक्षिप्त परिचय के आधार पर यह सहज में कहा जाता है कि महासती प्रभावती जी के काव्य में ध्वन्यात्मकता है, प्रभावशीलता है और है गजब की सुबोधता । भाषा में सारल्य है । शैली में गजब की लोकप्रियता है । जैसा भी कण्ठ हो यदि इस काव्य को दुहराएगा तो मन झूम जाएगा, यह तय है । अलंकार हैं पर वे किसी पांडित्य प्रदर्शन के लिए काव्याभिव्यक्ति में गृहीत नहीं हुए हैं । अर्थ - उत्कर्ष के लिए सहज में प्रयोग बन पड़ा है। लोक में प्रच लित रस, छन्द तथा राग-रागिनियों के प्रयोग से कवयित्री ने काव्य को सरस बनाया है ।
काव्य यदि अभिव्यक्ति की कसौटी है तो गद्य लेखन की कसौटी है अर्थात् गद्य को सरस बनाना दुरुह ही नहीं जटिल भी है। विदुषी लेखिका के गद्य में लघु कथा और निबन्ध जैसी विधाओं में भी अपनी सफल लेखिनी चलाई है । यहाँ उनकी गद्यात्मक कृतियों का संक्षेप में अनुशीलन करना आवश्यक है ।
[ जीवन की चमकती प्रभा
विचार संप्रेषण में कथा का योगदान आदिम है। दादी और नानी की क्रोड़ में बैठकर शिशु कथा को सुनकर ही अपने ज्ञान को विस्तार देते । उन्हें सद्असद का बोध हुआ करता है । विदुषी लेखिका ने भी अपनी आरम्भिक कृतियों में कथा को ही प्राथमिकता दी है । अठारह कथाओं का यह संकन हमें अठारह प्रकार के उपदेशों का धर्म लाभ प्रदान करता है । ये लघु कथाएँ हैं अथवा बोध कथाएँ यह निर्णय कर पाना सरल नहीं है । सबकी सब पौराणिक गर्भ से निसृत हैं किन्तु अपने
ढंग से उनका मार्जन किया गया है इस क्रिया में लेखिका की सूझ-बूझ मुखर हो उठी है ।
भाषा सरल है और सुबोध है । शैली जिसे 'सुनकर श्रोता और पाठक पूरे मन से डूब जाता है, विभोर हो जाता है । रचना कौशल का आधार इस पर निर्भर करता है कि उसके श्रोता बखूब सुनते हैं अथवा ऊबते हैं । कहानी के अन्त में उपदेश मुखरित है यही लेखिका का लक्ष्य रहा है । पाठक इस प्रकार असद से हटकर सद् की ओर उन्मुख होता है ।
[प्रभा प्रवचन
निबन्ध का मौखिक रूप ही प्रवचन कहलाता है । इसमें उपदेश की सामग्री व्यवस्थित होकर एकमेव होकर अन्तर से निकल कर बाहर आती है । हृदय की वाणी सत्यं शिवं और सुन्दरं होती है । प्रभा प्रवचन की पूरी वाणी सत्यं शिवं और सुन्दर की त्रिवेणी से अनुप्राणित है । दस प्रवचनों का यह संग्रह लेखिका की प्रौढ़ वैचारिकता का प्रतीक है । भाषा और शैली प्रभावक है । विचारों में वह सक्षम है । हिन्दी में जो स्थान सरदार पूर्ण के अनुरूप सफल वाहक की भूमिका का निर्वाह करने सिंह का है वही स्थान श्रमण समाज में निबन्ध लेखन में महासती प्रभावती जी को प्राप्त है । इतने से निबन्धों में सुधी लेखिका ने सिद्ध कर दिया है कि उनकी वैचारिक साधना कितनी गहरी है। और वह कितनी पक चुकी है। सारे के सारे दृष्टान्त इस प्रकार दिए गए हैं कि लगता है कि वे लेखिका अथवा साधिका के अन्तर्मन को उद्घाटित करने के लिए लालायित हैं । श्रोताओं को एकदम आप्लावित करने में वे सफलता प्राप्त करते हैं ।
वाणी चरित्र की प्रतिध्वनि हुआ करती है । प्रस्तुत कृति में महासती जी का पूरा चारित्र पूरी साधना के साथ प्रकट हुआ है। पूरी कृतियों में वे सहज हैं किन्तु इसमें वे व्यवस्थित है । लगता है साधक की साधना का जो स्वत्व है वह इस अभिव्यक्ति में एकदम मुखर हो उठा है। एक भी शब्द
महासती साध्वी प्रभावती जी महाराज द्वारा प्रणीत साहित्य और उसका शास्त्रीय मूल्यांकन | २४५
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