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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
श्रमण संतों की परम्परा अर्वाचीन नहीं है। अपेक्षित होता है । कवयित्री ने सरल किन्तु सरस इस परम्परा में जहाँ साधक साधु-संतों का समागम भाषा-शैली में राजकुमार चन्द्रसेन को एक दृढ़रहा है, वहाँ सुधी साध्वियों का योगदान भी अपना प्रतिज्ञ, कठोर संकल्प तथा उत्साह का उन्नायक के महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । श्वेताम्बर श्रमण पर- रूप में चित्रित किया है। कृति का मुख्य संदेश है म्परा में स्थानकवासी परम्परा अपनी जागरूकता कि प्रत्येक कार्य-सिद्धि में अनेक विघ्न-बाधाएँ के लिए आरम्भ से ही विख्यात रहो है । इसो ख्याति आती हैं। कवयित्री ने कथा के तारतम्य को चिरंप्राप्त ज्ञान-गौतमी में श्री चन्दनबाला श्रमणो संघ जीवी बनाया है जिसमें प्रभावना के साथ राक्षसों की प्रवर्तिनी विदुषो महासती श्री सोहनकुंवर जी से घमासान युद्ध, अघोरियों से भिड़न्त का सजीव का नाम बड़े महत्त्व का है । आपकी सुशिष्या प्रति- वर्णन किया है । राक्षसों के घर जाकर कथानायक भामूर्ति सुधी साध्वी महासतो श्री प्रभावती महाराज प्राणों को हथेली पर रखकर चन्द्रावती को मुक्त एक ओर जहाँ साध्वीचर्या-तपस्या में तेजस्वी कराता है । इतने से काव्यात्मक वर्णन में शृंगार, आदर्श की स्थापना करती हैं, वहाँ दूसरी ओर हास्य, वीर, अद्भुत तथा शांत रसों का सुन्दर परिसाहित्यसर्जना में वे अपने समय की अगुआ को पाक हुआ है। प्रस्तुत कृति में कवयित्री का जीवन सपक्ष भूमिका निर्वाहन में पहल करती हैं। आपके रसवंती तत्त्वज्ञान पद-पद पर व्यक्त हुआ है जिसे साहित्य में स्वान्तःसुखाय की सुगन्ध प्रकीर्ण है तो माधुर्य काव्याभिव्यक्ति के माध्यम से जीवन का दूसरी ओर परजनहिताय और लोक-मंगल की उदात्त संदेश शब्दायित किया गया है। कृति में उदात्त भावना की निष्कम्प शिखा भी प्रज्वलित पुरुषार्थ की प्रेरणा तथा लक्ष्य के प्रति तन्मय भाव है । यहाँ साध्वी महाराज के द्वारा प्रणीत साहित्य- से समर्पित हो जाने का उद्घोष अभिव्यक्त है।
सम्पदा का शास्त्रीय निकष पर मूल्यांकन करना 0 साहस का सम्बल %. हमारा मुलाभिप्रेत रहा है ।
दिव्यात्माओं के आदर्श जीवन की कहानी साध्वी श्री प्रभावती जी महाराज ने भारतीय चरित्रकाव्य का मुख्य विषय होती है। साहस का B. जनभाषा तथा राजभाषा हिन्दी में गद्य तथा पद्य पक्ष भी चन्द्राप्रभु के चरित्र में अन्तर्कथा के रूप में
दोनों ही रूपों में विभिन्न काव्यरूपों में साहित्य समाहृत श्रीसेन-हरिसेन के जीवनवृत्त पर आधृत सृजन किया है । काव्य में चरित्रकाव्य, भजन तथा है। विदुषी कवयित्री ने श्रीसेन और हरिसेन इन
तक जैसे सशक्त काव्यरूपों में सात ग्रन्थों का दोनों भाइयों के चरित्र द्वारा सत्य, दया. विनयसजन किया है। गद्य-लेखन में आपने बोधकथा शीलता, सेवापरायणता जैसे उदात्त गुणों की तथा प्रवचन के रूप में अनेक विचारपूर्ण निबन्धों प्रतिष्ठा की है । चरित्र में स्पष्ट किया गया है कि की रचना की है। अब प्रत्येक कृति का साहित्यिक सांसारिक सुख यथार्थ सुख नहीं है, वह मात्र सुखामुल्यांकन करना यहाँ असंगत न होगा।
भास है । पारमार्थिक सुख ही यथार्थ सुख है और 0 पुरुषार्थ का फल
हमें उसी को पाने के लिये प्रयत्नशील होना ___ 'पुरुषार्थ का फल' एक पौराणिक चरित्र काव्य चाहिये। है। इसकी रचना प्रसिद्ध जैन ऐतिहासिक कथानक श्रीसेन और हरिसेन दोनों ही भाइयों के मन चन्द्रसेन-चन्द्रावती के कथावृत्त पर आधारित है। में जब वैराग्य उत्पन्न होता है तब उन्हें सांसारिक यह वस्तुतः एक रूपक काव्य है, जिसमें चन्द्रसेन वैभव त्यागने में कोई कष्ट नहीं होता। ये तुरन्त पुरुषार्थ का प्रतीक है और चन्द्रावती अभीप्सित श्रमण-जीवन स्वीकार कर लेते हैं। कर्वायत्री ने लक्ष्य का । लक्ष्य प्राप्त्यर्थ पुरुषार्थ का उपयोग परम इतने से कथावृत्त को इतने प्रभावक और मोहक
२४२ / तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन
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