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म सावारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
आगम-सम्पादन : दशवकालिक सूत्र
स्वतंत्र लेखन एक कला है, इस कला में अनुभूति प्रधान होती है, अनुभूति एवं अभिव्यक्ति की कुशलता लेखक को श्रेष्ठता प्रदान करती है।
सम्पादन में श्रुति व अधीति प्रधान है। लेखक का गम्भीर अध्ययन, शब्दज्ञान और शब्दों की डोर पकड़कर भावों की गहराई तक पहुँचना तथा उनके 'सुप्त' अर्थ का उद्घाटन करना-इसी में संपादक की कला का चातुर्य है।
सम्पादक मूल लेखक की परोक्ष आत्मा का, उन शब्दों के माध्यम से प्रत्यक्ष दर्शन करता है । जो सम्पादक इस कला में निष्णात नहीं, वह योग्य सम्पादक भी नहीं हो सकता।
सम्पादन में भी आगम-शास्त्र जैसे गम्भीरतम विषय का सम्पादन करना तो और भी कठिन है, कठिनतम है। इसमें न केवल शब्द ज्ञान ही पर्याप्त है, अपितु उस विषय का सर्वागीण और उसके सम सामयिक देश-काल में निर्मित साहित्य, आचार परम्परा आदि का भी ज्ञान अपेक्षित है तभी सम्पादक शास्त्र के साथ न्याय कर सकता है ।
महासती श्री पुष्पवतीजी ने जैन आगम साहित्य के प्रमुख सूत्र-दशवकालिक सूत्र का संपादनविवेचन किया है। यह विवेचन बहुत ही विस्तृत है, तथा टोका-चूणि-भाष्य आदि तात्कालिक विवेचना ग्रन्थों का आधार मानकर चला है। इसमें महासतीजी ने अथक परिश्रम किया है, तथा अपने अध्ययन, अनुभव, चिन्तन तथा अधीत श्रुत ज्ञान का पर्याप्त उपयोग किया है। सौ छोटे-छोटे ग्रन्थों के सम्पादन से एक ही उत्तम-श्रेष्ठ सम्पादन अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। महासतीजी की आगम-सम्पादन कुशलता क निदर्शन कराने में यही एक पर्याप्त है। इस आगम पर उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी शास्त्री ने विस्तत सर्वांगपूर्ण प्रस्तावना लिखी है। प्रस्तावना के अन्त में लिखी पंक्तियाँ संपादन की विशिष्टता पर प्रकाश डाल रही हैं -
'स्थानकवासी समाज एक प्रबुद्ध और क्रान्तिकारी समाज है। उसने समय-समय पर विविध स्थानों से आगमों का प्रकाशन किया तथापि आधुनिक दृष्टि से आगमों के सर्वजनोपयोगी संस्करण का अभाव खटक रहा था । उस अभाव की पूर्ति का संकल्प मेरे श्रद्धय सद्गुरुवर्य राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी पूज्य उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म. के स्नेह-साथी व सहपाठी, श्रमण संघ के युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी मधुकर मुनिजी ने किया। युवाचार्यश्री ने इस महान कार्य को शीघ्र सम्पन्न करने हेतु सम्पादकमण्डल का गठन किया और साथ ही विविध मनीषियों को सम्पादन, विवेचन के लिए उत्प्रेरित किया । परिणामस्वरूप सन् १९८३ तक अनेक आगम शानदार ढंग से प्रकाशित हुए। अत्यन्त द्रुतगति से आगमों के प्रकाशन कार्य को देखकर मनीषीगण आश्चर्यान्वित हो गए। पर किसे पता था कि युवाचार्य श्री का
आगम सम्पादन : दशवकालिक सूत्र | २३७.
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