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साध्वारत्न पुष्पवता आमनन्दन ग्रन
दूध बाहर की हवा लगने के कारण इतना लाभ कीचड़ से बाहर नहीं निकल सकोगे । कीचड़ से नहीं करता । बाहर निकलने का उपाय है कीचड़ पर लेट जाओ और सरक कर बाहर निकलो । बल (शक्ति) से नहीं अपितु कल (युक्ति) से कार्य लेने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है ।
पुस्तकों से ज्ञान तो प्राप्त हो सकता है किन्तु उसके साथ गुरु का अनुग्रह उसे प्राप्त नहीं होता जो ज्ञान के विकास में बहुत ही सहायक है ।
माँ की मार में उसके हृदय का अपार प्यार छिपा रहता है । गुरु की डाँट में हृदय का अनन्त वात्सल्य सन्निहित रहता है। कुम्भकार की मार में बर्तन का विकास छुपा हुआ है । जो इन्हें सहन करता है, वह प्रगति को वरण करता है । 20] कितने ही लोग कहा करते हैं कि लकीर के फकीर न बनो । पर मैं चिन्तन के क्षणों में सोचती हूँ कि लकीर पर चलना ही तो फकीरी का लक्षण है । जो लकीर को ही भंग कर देता है वह फकीर ही कैसा ! ध्यान रहे लकीर का अर्थ मर्यादा है । मर्यादा का उल्लंघन करना सन्त का स्वभाव नहीं है ।
10 ज्ञानी और अज्ञानी के स्वभाव में बड़ा अन्तर होता है । ज्ञानी किसी बात को पकड़ता है । उसकी पकड़ ताले की तरह होती है जो चाबी लगते ही खुल जाता है अपनी भूल का ज्ञान होते ही वह उसे छोड़ देता है पर अज्ञानी की पकड़ मकोड़े के सदृश होती है जो टूटता है पर छूटता नहीं ।
मानव ने बौद्धिक विकास अत्यधिक किया है । अणु परमाणु आदि भौतिक पदार्थों की अन्वेषणा में वह इतना अधिक तल्लीन हो गया कि स्वयं को भूल बैठा । वह स्वयं कौन है ? कहाँ से आया है ? उधर निहारने की उसे फुरसत ही नहीं है । बुद्धि जिसके बल-बूते पर पनप रही है उसके रहस्य से वह अपरिचित है ।
मैंने देखा एक व्यक्ति तालाब के कीचड़ में फंस गया था । कीचड़ से बाहर निकलने के लिए वह जोर लगा रहा था, वह ज्यों-ज्यों जोर लगाता था, त्यों-त्यों अधिकाधिक कीचड़ में धसता जाता था । एक अनुभवी ने उसे बताया- तुम इस तरह
२२२ | तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन
[] केसर के रंग का भी दाग होता है और कीचड़ का भी । केसरिया दाग सुहावना लगता है व मंगल कार्य का प्रतीक है जबकि कीचड़ का दाग दिखने में भद्दा लगता है और वह असभ्यता की निशानी है | वैसे ही पुष्य और पाप भी हैं । केसरिया दाग की तरह पुण्य है तो कीचड़ के दाग की तरह पाप | दोनों दाग ही हैं- एक शुभ है दूसरा अशुभ है | साधक को अशुभ और शुभ स्थिति से उठकर शुद्ध स्थिति को प्राप्त करना है। अशुभ विकृति है, शुभ संस्कृति है और शुद्ध प्रकृति है ।
[ कितने ही व्यक्तियों के अन्तर्मानस में अपने प्रभाव को फैलाने की इच्छा होती है । वे प्रभाव तो फैलाना चाहते हैं पर भाव को विशुद्ध बनाना नहीं चाहते । भावरहित प्रभाव आकाशीय विद्यत की तरह है जो अपना आलोक एक क्षण दिखाकर पुनः लुप्त हो जाती है ।
मैं ट्रेन की पटरियों के किनारे-किनारे चल रही थी। ट्रेनें आ आ-जा रही थीं । जहाँ पर लाइन में मोड़ होता या कोई विशेष परिस्थिति होती या सिगनल डाउन नहीं होता तब इंजन सीटी बजाता उसकी सीटी को सुनकर, मैं सोचने लगी बिना मतलब इंजन भी बोलता नहीं है पर आज का मानव बिना मतलब बड़बड़ाता रहता है । जबकि महापुरुषों ने 'बहुयं माय आलवे' अधिक न बोलो का संदेश दिया है ।
1 सामान्य कागज और नोट में यही अन्तर है कि सामान्य कागज पर राजकीय मुद्रा नहीं होती जबकि नोट पर राजकीय चिन्ह होता है और जितना अंक उस पर अंकित होता है उतना ही उसका मूल्य बढ़ जाता है । समय भी सामान्य
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