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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
ब्रह्म-साधना—इसी प्रकार महासतीजी ने ब्रह्मचर्य व्रत पर प्रकाश डालते हुए कहा-चर्य का अर्थ होता है-विचरण करना। इस प्रकार ब्रह्मचर्य का अर्थ हुआ-आत्मा में रमण करना, आत्मा की सेवा में विचरण करना अथवा परमात्मभाव में रमण करना, परमात्मा की सेवा में विचरण करना। तीसरा अर्थ होता है-महान् या वृहत में विचरण या रमण करना।
जब साधक जीवन के क्षुद्र क्षेत्र में विचरण करता है, तब प्रत्येक स्थिति में अपने आपको क्षद्र एवं दीन-हीन मानने लगता है। ऐसी स्थिति में उसका गमन या उसका विचरण विराट (परमात्मा या वृहत् ध्येय) की ओर कैसे हो सकता है ? किन्तु जब साधक किसी न किसी विराट् ध्येय में या परमात्मा में विचरण करने लगेगा तब स्वतः ही उसके मन, वचन, तन इन्द्रिय आदि में क्षुद्र विचार, वासना के विचार या विकार नहीं आएँगे। क्योंकि इन्द्रिय-विषयों की लालसा के विचार ही उसे क्षुद्रता की ओर ले जाते हैं; मन के काम, क्रोध, लोभ-मोह आदि विकार ही उसे हीनता की ओर खींच ले जाते हैं । जब वह इनकी ओर ध्यान न देकर अपने व्यापक विशाल ध्येय या परमात्मा, आत्मा आदि की ओर ही ध्यान
देगा तब स्वतः ही वे विकार या दुर्विचार शान्त हो जाएँगे । अतः क्षुद्र एवं हीन सीमा को लांघकर पवित्र 2 एवं महान् जीवन की विराटता की ओर बढ़ना, उसमें रमण करना ही वस्तुतः ब्रह्मचर्य है।
इसी प्रकार जहाँ ब्रह्मचर्य का अर्थ-परमात्मभाव या शुद्ध आत्मभाव की ओर चर्या करना, गति करना या चलना होता है, वहाँ भी साधक जब परमात्मभाव या शुद्धात्मभाव की ओर अग्रसर होता है या उसके लिए साधना करता है, वहाँ उसकी साधना करते समय क्षुद्र विकारों या विषय-वासनाओं को दमन करना आवश्यक हो जाता है। तभी ब्रह्मचर्य साधक के जीवन में परमात्मभाव की ज्योति प्रदीप्त कर देता है।"
आज अशान्ति के काले कजराले वादल चारों ओर मंडरा रहे हैं। उस अशान्ति का मूल कारण है-परिग्रह । परिग्रह पर चिन्तन करते हुए उन्होंने अपने प्रवचन में कहा है-"मनुष्य के जीवन में अपरिग्रह वृत्ति को आग लगाने वाली तीन आसुरी वृत्तियाँ- एषणाएं आसुरी रूप बना कर आती है । वे हैंवित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा । ये असन्तोष के तीन रूप हैं । इन्हीं से परिग्रह अधिकाधिक भड़कता जाता है । इन तीनों को एषणा इसलिए कहते हैं कि ये तीनों क्रमशः धन, वासना और अहंता की तृष्णा अधिकाधिक एवं अमर्यादित रूप से भड़का देती हैं।
___इस प्रकार वे अपने प्रवचनों में विषय का प्रतिपादन इतना शानदार प्रस्तुत करती हैं कि श्रोतागण तन्मय हो जाते हैं । उनके प्रवचनों में उनकी बहुश्रुतता का स्पष्ट निदर्शन होता है। आपके प्रवचन जीवन को पावन प्रेरणा प्रदान करते हैं।
उपन्यास साहित्य
प्रवचन साहित्य के अतिरिक्त आपने जीवनोपयोगी, प्रेरणाप्रद कथा विधा में साहित्य का भी लेखन किया है। कथा विधा में आपने कई उपन्यास लिखे हैं। उनमें से दो उपन्यास प्रकाशित हए हैं। "सती का शाप" और "किनारे-किनारे'। (१) सती का शाप
___ इस उपन्यास में महासती पुष्पवतीजी ने भारत की उस नारी का चित्रण किया है जिसके जीवन के कण-कण में शौर्य है । वह एक ऐसी ज्वाला है, जो उसकी ओर कुदृष्टि से देखने वाले को भष्म कर देती
सृजनधर्मी प्रतिभा की धनी : महासती पुष्पवतीजी | २११
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