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साध्वारत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ।
అచించిందించడం జరిగణతం
सृजनधर्मी प्रतिभा की धनी महासती पुष्पवतीजी
--राजेन्द्रमुनि शास्त्री एम. ए. साहित्यमहोपाध्याय
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पिछले पृष्ठों में हम महासती पुष्पवतीजी के गंगा सम पवित्र जीवन की एक झांकी देख चुके हैं। उनके व्यक्तित्त्व के मूल आधार हैं१. सहिष्णुता
२. संयमशीलता ३. सतत ज्ञान-आराधना
४. जन-मंगल के लिए श्रम-शीलता उनका यह चतुर्मुखी व्यक्तित्त्व आज एक आदर्श श्रमणी के रूप में मंडित है। उनके गरिमान्वित कृतित्व के दर्शन कर अब हम जान पायेंगे कि उनका सृजनधर्मी कृतित्व साहित्य-कला-संस्कृति के उपवन । में सतत नव-नव सुमन खिलाता रहा है। उनका नाम है-पुष्पवती। यह नाम सार्थक हुआ है-साहित्य के मधुवन में । साहित्य की विविध विधाओं में उनकी समान गति है, त्वरित निर्मित है। यद्यपि वे अपनी
हारचर्या, साधुचर्या के बहुविध नियम-उपनियम-ध्यान साधना आदि में निरत रहने से लेखन आदि के लिए बहुत ही कम समय निकाल पाती हैं,फिर जितना समय बचता है, उसमें शिष्याओं को अध्यापन, बालक-बालिकाओं व श्रावक वर्ग को धर्म-ज्ञान देना, तत्त्वचर्चा करना व प्रवचन करना इन विधियों में ही समय का अधिकांश भाग बीत जाता है। स्वतंत्र लेखन चिन्तन के लिए बहुत ही कम समय बच पाता है, किन्तु जो बच पाता है, उतने में भी सतत अप्रमादशील चर्या में विहरण करने वाली श्रमणी अपना कुछ लेखन करती है। साहित्य का नव सृजन करती है, अपने उदात्त व्यापक चिन्तन से यूग चेतना को लाभान्वित करती रहती है।
पूज्य महासतीजी की साहित्य सजन की अनेक विधाएं रही हैं। संस्कृत काव्य रचनाओं के साथ ही वे हिन्दी में काव्य रचना की अद्भुत क्षमता रखती है। हिन्दी काव्य सम्पादन में भी उनकी कला निखरी है । पूज्य माताजी प्रभावतीजी महाराज द्वारा रचित राजस्थानी तथा हिन्दी चरित्र काव्यों के सम्पादन में उनकी प्रतिभा का चमत्कार देखा जा सकता है। संशोधन, सम्पादन, भाव, भाषा, शैली, काव्य-कल्पना आदि में संशोधन संवर्धन कर उन काव्यों में अत्यधिक लालित्य भर दिया है। जिनकी यत् किंचित चर्चा अगले पृष्ठों में की गई है।
सृजनधर्मी प्रतिभा की धनी : महासती पुष्पवतीजी | २०५.