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प्राण पुष्पवता जामनन्दन ग्रन्थ
आचार्य प्रवर ने गम्भीर चिन्तन के पश्चात् जो निर्णय लिया है उसका सर्वत्र स्वागत हो रहा है । अपने लघु भ्राता को इस पद पर आसीन देखकर मुझे हार्दिक गौरवानुभूति हो रही है ।
महामहिम आचार्य प्रवर के आदेश को शिरोधार्य कर सन् १६८७ का वर्षावास आपश्री का अहमदनगर में हुआ । इस वर्षावास में आपको आचार्य सम्राट, उपाध्यायश्री और उपाचार्यश्री का सान्निध्य प्राप्त हुआ । समय-समय पर आपश्री के महत्त्वपूर्ण प्रवचन भी हुए । आचार्य प्रवर की असीम कृपा आप पर रही। इस वर्षावास में भारत के विविध अंचलों से दर्शनार्थी बंधु उपस्थित होते रहे । उनका सम्पर्क भी आपको मिलता रहा ।
अभिनन्दन ग्रन्थ का समर्पण
२६ नवम्बर ८७ को आचार्य प्रवर का दीक्षा अमृत महोत्सव पर्व मनाया गया । जिसे 'दीक्षा हीरक जयन्ती कहा जाता है। हीरे की चमक-दमक में अभिवृद्धि होती है, इसलिए साध्वीरत्न पुष्पवतीजी के स्वर्ण जयन्ती का पावन प्रसंग होने से इस शुभ प्रसंग पर साध्वी रत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ घोड़नदी प्रसिद्ध उद्योगपति रसिकलालजी धारीवाल ने अभिनन्दन ग्रन्थ का विमोचन कर प्रथम प्रति आचार्य सम्राट के कर-कमलों में समर्पित की और दूसरी प्रति महासती श्री पुष्पवतीजी म० को समर्पित की। इस सुनहरे अवसर पर 8 विरक्त आत्माओं ने आर्हती दीक्षा ग्रहण कर ( जिनशासन की शोभा में चार चाँद लगाये । इस अवसर पर आचार्य प्रवर, उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म०, उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म०, प्रवर्तक श्री कल्याण ऋषिजी म०, प्रवर्तक श्री रूपचन्दजी म०, सलाहकार श्री रतनमुनिजी म०, सलाहकार श्री सुमतिप्रकाशजी म० त० श्री मोहनमुनिजी म० त० श्री वृद्धिचन्द्रजी म० प्रभृति ५७ सन्त तथा साध्वीरत्न महासती पुष्पवतीजी म०, ! महासती श्री रामकंवरजो म०, महासती प्रमोदसुधाजी म०, महासती सुन्दरकुंवरजी म०, महासती पुष्पकंवरजी म०, महासती सुबालकुंवरजी म०, महासती कौशल्याजी म०, महासती धर्मशीलाजी म० आदि ७२ साध्वियाँ कुल ठाणें १२६ सन्त सती व ३५-४० हजार की विशाल जन- मेदिनी उपस्थित थी । इस समारोह के अध्यक्ष महाराष्ट्र राज्य के मुख्य मन्त्री शंकरराव चव्हाण थे।" तथा कान्फ्रेंस के अध्यक्ष सेठ संचालालजो बाफना, कान्फ्रेंस के कार्यवाहक अध्यक्ष श्री [हस्तीमलजी मुनोत, कान्फ्रेंस के चार उपाध्यक्ष (१) श्री पारसमलजी गौरड़िया ( २ ) श्री मोहनलालजी तूंकड़ ( ३ ) श्री फकीरचन्दजी मेहता ( ४ ) श्री जे० डी० जैन तथा भारत जैन महमण्डल के महामन्त्री श्री पुखराजमलजी लुंकड़, पूना सन्त सम्मेलन समिति के अध्यक्ष श्री बंकटलालजी कोठारी आदि स्थानकवासी समाज के गणमान्य नेता व ग्रन्थ के प्रबन्ध सम्पादक श्रीचन्दजी सुराना भी उपस्थित थे ।
इस सुनहरे अवसर पर संक्षिप्त और सारपूर्ण प्रवचन करती हुई साध्वीरत्न पुष्पवतीजी ने कहा - 'जो मुझे अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट दिया गया है मैं उसे ग्रहण करती हूँ और इस ग्रन्थ को मैं अपने जीवन निर्माता सद्गुरुणीजी महाराज श्री सोहनकुंवरजी को और सद्गुरुदेवश्री को समर्पित करती हूँ जिनकी असीम कृपा से ही मैं इस गौरवपूर्ण पद पर पहुँच सकी हूँ ।'
समारोह बहुत ही दर्शनीय था। समारोह के पश्चात् महासती पुष्पवतीजी ने कर्नाटक गजेन्द्रगढ़ पधारने के लिए अहमदनगर से उस दिशा में विहार किया । सोलापुर, बीजापुर, बागलकोट होते हुए गजेन्द्रगढ़ पधारेंगी ।
प्रस्तुत है ।
इस प्रकार साध्वी रत्न सद्गुरुणी श्री पुष्पवतीजी महाराज की जीवनचर्या की यह संक्षिप्त झाँकी
एक बूद, जो गंगा बन गई : साध्वी प्रिय दर्शना । २०१
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