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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
सिस्टर उपहास करती कि ये नए महाराज आ गए। सुन्दरि के ताऊजी चम्पालालजी बरडिया हॉस्पीटल के प्रमुख कार्यकर्ता थे । अतः सभी कहते कि बाबूजी की पौती मुंह बाँधी हुई है।
श्री चम्पालालजी ने सुन्दरि को कहा-सुन्दरि ! जब तक तू हॉस्पीटल में रहे तब तक मुखवस्त्रिका उतार दिया कर।
सुन्दरि ने कहा-पूज्यवर ! आपका यह आदेश अनुचित है । मैंने यह प्रतिज्ञा ले रखी है, भोजन के अतिरिक्त मैं मुख-वस्त्रिका सदा मुंह पर बाँधे रहूँगी। तो आप ही बताइए कि मैं मुंह-पती कैसे उतार सकती हूँ ?
श्री चम्पालालजी के पास कोई उत्तर नहीं था। वे प्रति-दिन महासती मदनकुंवरजी और सोहनकुंवरजी के दर्शन हेतु आया करते थे। अतः उन्होंने यह शिकायत महासतीजी से की कि आप सुन्दरि को समझा दें कि वह हॉस्पीटल में मुंह-पत्ति न रखा करें।
महासती मदनकुंवरजी ने कहा-देवाणुप्रिया ! हम मुंह पति बाँधने के लिए तो कह सकते हैं। किन्तु मुंह-पति खोलने के लिए नहीं कह सकते । यह हमारी मर्यादा है।
दीक्षा छुपकर क्यों ? एक दिन उदयपुर के आचार्य प्रवर श्री जवाहरलालजी म० के परम भक्त श्रावक श्री गेरी लाल जी खींवसरा महासती श्री सोहनकंवरजी म० के पास गये और कहा-महासतीजी ! सुन्दरि की दीक्षा की बात को लेकर पारिवारिक जन अत्यधिक विरोध कर रहे हैं। मेरी आपसे विनती है कि आप उदयपूर से विहार कर दें। और १००-५० कोस दूर पधार जाएँ। फिर वहाँ पर सुन्दरि को दीक्षा दे दें। दीक्षा दे देने के पश्चात् दो-तीन वर्ष तक उदयपुर न पधारें जिससे कि सारा वातावरण शान्त हो जाएगा।
निर्भीक साधिका महासती सोहनकुँवरजी ने कहा-मैं चोर नहीं हूँ। चोर की तरह दीक्षा देना मुझे पसन्द नहीं है । घर की मालकिन तीजकुंवर जी ने स्टाम्प के कागज पर मुझे आज्ञा-पत्र लिख कर दे दिया है । इसलिए मैं सुन्दरि की दीक्षा उदयपुर में ही करने के भाव रखती हूँ। आप जैसे सुश्रावकों को इस प्रकार कहना; क्या शोभा देता है ?
माता तीज कुंवरि ने हॉस्पीटल में ही पण्डित को बुलाया और दीक्षा के मुहूर्त के लिए कहा। जोशी ने मुहूर्त निकाला संवत १९६४ माघ शुक्ला त्रयोदशी शनिवार तदनुसार बारह फरवरी १९३८ ।
नारी, कभी न हारी सुन्दरकुंवरि को आडम्बर प्रिय नहीं था। वह चाहती थी कि उसकी दीक्षा का कार्यक्रम सादगी से सम्पन्न हों। किन्तु माता तीजकुंवरि चाहती थी कि सुन्दरि की दीक्षा बहुत ही ठाट-बाट से हों। जिससे कि सभी पारिवारिकजनों को यह ज्ञात हो सके कि एक नारी जिस कार्य को करने का संकल्प कर लेती है, वह उस कार्य को अच्छी तरह से सम्पन्न कर सकती है । नारी का एक रूप ही हैं, नारी; कभी न हारी। कल यह कोई न कह दे कि सौतेली मां होने के कारण विवाह के खर्च से डर कर सुन्दरि लो दीक्षा दिला दी । तीन दिन तक दीक्षा महोत्सव का कार्यक्रम चलता रहा । तीन दिन तक जुलूस निकलता रहा । माता स्वयं हॉस्पीटल में भयंकर वेदना से छटपटा रही थी । इधर दीक्षा का कार्यक्रम चल रहा था।
कार्यक्रम प्रारम्भ होने के पूर्व महासती श्री सोहनकुंवरजी ने माता तीजकुंवर को कहा कि इस समय तुम अत्यधिक रुग्ण हो । तुम्हारी सेवा के लिए सुन्दरि की आवश्यकता रहेगी। क्योंकि बालक धन्ना तो अभी पांच वर्ष का ही है । इसलिए अभी दीक्षा स्थगित रखी जाय।
१८६ | द्वितीय खण्ड : व्यक्तित्व दर्शन
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