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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
हनुमान ने सुनी और वह सोचने लगा यह मेरा नहीं-भगवान राम का अपमान है । मैं उनका दूत बनकर यहाँ आया हूँ। मेरे में अनन्त शक्ति है । ज्योंही हनुमान को अपनी शक्ति का भान हुआ त्योंही उसने एक झटका देकर नागपाश के टुकड़े-टुकड़े कर दिये । और वह उछलकर वहां से चल दिया।
रामायण का प्रसंग सुनकर मुझे भी अहसास हुआ कि मुझमें भी अपूर्व शक्ति है। मैं चाहूँ तो मोह के नागपाश को तोड़ कर मुक्त बन सकती हूँ। मैं वीरांगना हूँ। मुझे पीछे नहीं हटना है, आगे बढ़ना है । अध्यात्म की ज्योति जागृत करना है ।
भावनाएं संकल्प बनने लगीं
मैंने अपने मन में निश्चय किया और साहस बटोर कर अपने हृदय की बात माँ से कही। और उसकी प्रतिक्रिया जानने के लिए माँ के मुंह की ओर देखने लगी। माता तीजकुंवर ने कहा-'बेटी ! तेरी भावना बहुत ही उतम है, पर संसार बड़ा विचित्र है। जब लोगों को यह बात ज्ञात होगी तो कहेंगे कि सौतेली मां होने से लड़की को घर से निकाल दिया है। सारा दोषारोपण लोग मेरे पर करेंगे । इसलिए तुमने जो बात मेरे से कही है उस पर गम्भीरता से विचार लो।।
सुन्दरि ने कहा-मां ! तुमने मुझको कितना प्यार दिया है ? जितना प्यार तुमने दिया है, उतना प्यार तो असली माँ भी नहीं दे सकती। तुम्हारे प्यार ने तो पिता के प्यार को भुला दिया है। कभी भी तुमने सोतेली माँ की तरह मेरे से व्यवहार नहीं किया। तुम प्रतिदिन मुझे बढ़िया से बढ़िया भोजन बनाकर खिलाती हो, नित नये कपडे पहनातो हो और देखो, मुझे कितने आभूषण पहना रखे हैं ? तुम्हारे प्रत्येक व्यवहार में हार्दिक स्नेह झलक रहा है, फिर लोग क्यों कहेंगे ?
माता तीजकुंवर ने प्यार से हल्की-सी चपत लगाते हुए कहा-तुम तो बड़ी समझदार हो गई हो । इस बात पर हम बाद में अवकाश के क्षणों में सोचेंगे । अभी तो समय हो गया है। हम गुरुणी जी महाराज के दर्शन के लिए चलें। माता ने बढ़िया वस्त्र सुन्दरि को पहनाये, आभूषण धारण करवाए और दर्शन के लिए चल पड़े।
__आज माँ के चेहरे पर अपूर्व प्रसन्नता थी। वह मन ही मन सोच रही थी। संसार असार है। मेरी लाड़ली उस असार संसार को त्यागने के लिए ललक रही है। यह इसके प्रबल पुण्य की निशानी है । संसार के प्रवाह में तो अनन्त काल से जीव बहता रहा है, भटकता रहा है। आज इसके मन में यह निर्मल भावना पैदा हुई है । कल यह भवना विराट रूप धारण करेगी।
दूसरे ही क्षण माँ तीजकुंवरि सोचने लगी कि अभी तो मेरे श्वसुर विद्यमान हैं। वे जब आज्ञा देंगे, तभी तो यह कार्य सम्भव है । श्वसुरजी धर्मनिष्ठ हैं, पर मोह का राज्य बड़ा प्रबल है। अभी तो यह उनकी एकाएक पोती है । वे सहज रूप में आज्ञा प्रदान नहीं करेंगे। इसलिए बात करने से पहले अपने मन को सुदृढ़ बनाना चाहिए।
सद्गुरुणी जी के सामने ही माता तीजकुंवरि ने अपने हृदय की बात कही-कि सुन्दरि ! तू अपने मन को मजबूत बना ले । अभी कोई जल्दी नहीं है। दादा जी को बात कहने से पूर्व कुछ दिनों तक और सोच ले । बात में पश्चात्ताप न करना पड़े।
सुन्दरि ने अनेक नियम ग्रहण किये। पर वे नियम या तो वह स्वयं जानती थी या माताजी
१७६ / द्वितीय खण्ड : व्यक्तित्व दर्शन
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