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साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
में वैराग्य भावना अठखेलियाँ करती थी । यही कारण है कि अजमेर में सन् १९६३ में श्रमणी संघ ने मिलकर आपको चन्दनबाला श्रमणीसंघ की अध्यक्षा नियुक्त किया और श्रमणसंघ के उपाचार्य श्री गणेशीलालजी महाराज समय-समय पर अन्य साध्वियों को प्रेरणा देते हुए कहते कि देखो, विदुषी महासती सोहनकुंवर कितनी पवित्र आत्मा हैं । उनका जीवन त्याग- वैराग्य का साक्षात् प्रतीक है। तुम्हें इनका अनुसरण करना चाहिए ।
विदुषी महासती सोहनकुंवरजी जहाँ ज्ञान और ध्यान में तल्लीन थीं वहाँ उन्होंने उत्कृष्ट तप की भी अनेक बार साधनाएँ कीं । उनके तप की सूची इस प्रकार है
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१
१५
१३
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१०
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ह
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२३ २२
१
२
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४०
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१
४
६५
२०
२
३
६१
१७
३
२
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जब भी आप तप करतीं तब पारणे में तीन पौरसी करती थीं या पारणे के दिन आयंबिल तप करतीं जिससे पारणे में औद्दे शिक और नैमिक्तिक आदि दोष न लगे ।
आभ्यन्तर तप की सफल साधिका
बाह्य तप के साथ आन्तरिक तप की साधना भी आपकी निरन्तर चलती रहती थी । सेवा भावना आप में कूट-कूट कर भरी हुई थी । आप स्व-सम्प्रदाय की साध्वियों की ही नहीं किन्तु अन्य सम्प्रदाय की साध्वियों की भी उसी भावना से सेवा करती थीं । आपके अन्तमनिस में स्व और पर का भेद नहीं था ।
आचार्य गणेशीलालजी महाराज की शिष्याएँ केसरकुंवरजी, जो साइकिल से अक्सिडेण्ट होकर सड़क पर गिर पड़ी थीं, सन्ध्या का समय था, आप अपनी साध्वियों के साथ शौच भूमि के लिए गयीं । वहां पर उन्हें दयनीय स्थिति में गिरी हुई देखा । उस समय आपके पास दो चद्दर ओढ़ने को थीं, उनमें से आपने एक चादर की झोली बनाकर और सतियों की सहायता से स्थानक पर उठाकर लायीं और उनकी अत्यधिक सेवा-शुश्रूषा की । इसी प्रकार महासती नाथकुंवरजी आदि की भी आपने अत्यधिक सेवा शुश्रूषा की और अन्तिम समय में उन्हें संथारा आदि करवाकर सहयोग दिया । आचार्य हस्तीमलजी महाराज की शिष्याएँ महासती अमरकुंवरजी, महासती धनकुंवरजी, महासती गोगाजी आदि अनेक सतियों की शुश्रूषा की और संथारा आदि करवाने में अपूर्व सहयोग दिया ।
चन्दनबाला श्रमणी संघ की प्रथम प्रवर्तिनी
सन् १९६३ में अजमेर के प्रांगण में श्रमण संघ का शिखर सम्मेलन हुआ । उस अवसर पर वहाँ पर अनेक महासतियां एकत्रित हुईं। उन सभी ने चिन्तन किया कि सन्तों के साथ हमें एकत्रित होकर कुछ कार्य करना चाहिए। उन सभी ने वहां पर मिलकर अपनी स्थिति पर चिन्तन किया कि भगवान महावीर के पश्चात् आज दिन तक सन्तों के अधिक सम्मेलन हुए, किन्तु श्रमणियों का कोई भी सम्मेलन आज तक नहीं हुआ और न श्रमणियों की परम्परा का इतिहास भी सुरक्षित है। भगवान महावीर के
जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाएं एवं सद्गुरुणी परम्परा : उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि | १५७
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