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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।।
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जिसकी उम्र सात वर्ष की थी उसे उसकी दादी को सौंपकर वि० सं० १९८१ में ज्येष्ठ सुदी वारस को नान्देशमा ग्राम में दीक्षा ग्रहण की।
आपकी प्रकृति मधुर व मिलनसार थी। स्तोक साहित्य का आपने अच्छा अभ्यास किया। आपकी एक शिष्या बनी जिनका नाम खमानकुंवरजी है। आपका स्वर्गवास २०२६ माह बदी अष्टमी को १२ घन्टे के संथारे से सायरा में हुआ।
महासती प्रेम कुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के गोगुन्दा ग्राम में हुआ और आपका पाणिग्रहण उदयपुर में हुआ था। पति का देहान्त होने पर महासती फूलकुंवरजी के उपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा ग्रहण की। आप प्रकृति से सरल, विनीत और क्षमाशील थीं। वि० सं० १९६४ में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हआ। आपकी एक शिष्या थी जिनका नाम विदषी महासती पानकंवरजी था, जो बहुत ही सेवाभाविनी थीं और जिनका स्वर्गवास वि० सं० २०२४ के पौष माह में गोगुन्दा ग्राम में हुआ।
महासती मोहन कुंवर जी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के वाटी ग्राम में हुआ था। आप लोढ़ा परिवार की थीं । आपका पाणिग्रहण मोलेरा ग्राम में हुआ था । महासती फूलकुवरजी के उपदेश को श्रवण कर चारित्र धर्म ग्रहण किया। आपको थोकड़ों का अच्छा अभ्यास था और साथ ही मधुर व्याख्यान भी थीं।
____ महासती सौभाग्य कुंवरजी-आपका जन्म बड़ी सादड़ी नागोरी परिवार में हुआ था और बड़ी सादड़ी के निवासी प्रतापमल जी मेहता के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ। आपके एक पुत्र भी हुआ। महासती श्री धूलकुवरजी के उपदेश को सुनकर आपने प्रव्रज्या ग्रहण की। आपकी प्रकृति भद्र थी। ज्ञानाभ्यास साधारण था। वि० सं० २०२७ आसोज सुदी तेरस को तीन घंटे के संथारे के साथ गोगुन्दा में आपका स्वर्गवास हुआ।
महासती शम्भु कुंवरजी-आपका जन्म वि० सं० १६५८ में वागपुरा ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम गेगराजजी धर्मावत और माता का नाम नाथीबाई था। खाखड़ निवासी अनोपचन्द जी वनोरिया के सुपुत्र धनराजजी के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ। आपके दो पुत्रियाँ हुई। बड़ी पुत्री भूरवाई का पाणिग्रहण उदयपुर निवासी चन्दनमल जी कर्णपुरिया के साथ हुआ। कुछ समय पश्चात् पति का निधन होने पर आप उदयपुर में अपनी पुत्री के साथ रहने लगीं। महासती धुलकंवरजी के उपदेश को सनकर वैराग्य भावना उद्बुद्ध हुई। अपनी लघु पुत्री अचरज बाई के साथ वि० सं० १९८२ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को खाखड़ ग्राम में दीक्षा ग्रहण की। पुत्री का नाम शीलकुंवरजी रखा गया। आपको थोकड़ों का तथा आगम साहित्य का अच्छा परिज्ञान था। आपके प्रवचन वैराग्यवर्धक होते थे। वि० सं० २०१८ में आप गोगुन्दा में स्थिरवास विराजीं। वि० सं० २०२३ के आषाढ़ वदी तेरस को संथारापूर्वक स्वर्गवास हुआ। आपकी प्रकृति भद्र व सरल थी । सेवा का गुण आपमें विशेष रूप से था।
इसी परम्परा में परम विदुषी महासती श्री शीलकुंवरजी महाराज वर्तमान में हैं। आपको आगमों व थोकड़ों का बहुत गम्भीरज्ञान है । प्रवचन शैली प्रभावणालिनी है। महासती शीलकुँवरजी की महासती मोहनकुंवरजी, महासती सायरकुंवरजी, विदुषी महासती श्री चन्दनबालाजी, महासती श्री चेलनाजी, महासती साधनाकुँवरजी और महासती देवेन्द्राजी, महासती मंगल ज्योति, महासती धर्म ज्योति आदि अनेक आपकी सुशिष्याएँ हैं जिनमें बहुत-सी प्रभावशाली विचारक व वक्ता हैं।
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१४८ / द्वितीय खण्ड : व्यक्तित्व दर्शन
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