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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ,
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की तरह शीतल और सौम्य है। आपश्री की वाणी में अनोखा और अनूठा आकर्षण है, जो श्रोताओं के मन को मोह लेता है । आपकी वाणी में मृदुता के साथ साथ मधुरता एवं सुन्दरता का भी समन्वय है।
यह जानकर अत्यन्त आह्लाद की अनुभूति हो रही है कि आप अपने संयमी जीवन की अर्धशती पूर्ण करने जा रही हैं, इस उपलक्ष में आपश्री के सम्मानार्थ अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन होने जा रहा है । इस मंगल बेला पर अनन्त आस्था के सहस्रों पुष्प आपके श्री चरणों में अर्पित है। आप दीर्घजीवी होकर वीतराग शासन की गौरव-गरिमा में अभिवृद्धि करती रहें तथा श्रमणसंघ की शोभा में चार-चांद लगायें, यही आन्तरिक अभिलाषा और प्रशस्त मनीषा है ! शासन देव के चरणों में यहीं प्रार्थना । अभ्यर्थना है
तुम जियो हजारों साल ! हर बरस के दिन हों पचास हजार !!
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श्रद्धा-सुमन
-भेरूसिंह सिशोदिया
(रिछावड़ राजस्थान) महासती पुष्पवतीजी राजस्थान की जाज्वल्य- मुलायम है। वे जो सेवा में रहते हैं उनके साथ मान ज्योति हैं; मैं किन शब्दों में अपनी श्रद्धा व्यक्त बहत ही मधुरता का व्यवहार करती हैं जिससे करूं, मैं महासतीजी की सेवा में उदयपुर से साथ में रहने वाले को कष्ट अनुभव नहीं होता। गुजरात और महाराष्ट्र में पाद विहार में सेवा में मुझे यह जानकर बहुत ही प्रसन्नता हुई कि
रहने का अवसर मिला। इस लम्बी विहार यात्रा महासती जी म० ने दीक्षा के ५० बसन्त यशस्वी 1 में मुझे बहुत ही निकट से महासती जी का सानिध्य रूप से सम्पन्न किए हैं मेरी यही हार्दिक भावना । प्राप्त हुआ। मैंने इस सानिध्य में यह पाया कि है कि वे सदा स्वस्थ रहकर खूब विचरण करें।
पहासती जी का हृदय मक्खन से भी अधिक और धर्म की प्रभावना करें।
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पुष्प सूक्ति कलियां
प्रेम का प्रसाद वितरण करने में न तो कोई पैसा ल न ही कोई साधन । प्रेम का प्रसाद वाणी से, शरीर-सेवा से, भावना से, विचार से, करुणा, दया, सहानुभूति, संवेदना आदि किसी भी रूप में संसार भर में वितरित किया जा सकता है।
। प्रेम के अमृत में न तो धन लगता है और न उसका दान करने में कुछ व्यय ही होता है। प्रेम आत्मा का सहज प्रकाश है, उसे किसी से पाने या कहीं से लाने की आवश्यकता नहीं होती।
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११६ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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