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________________ साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ मैं महासतीजी के गुणों पर मुग्ध हूँ। -रतनलाल मारू (अध्यक्ष-मदनगंज श्रावक संघ) सवासित समनों की मधुर सौरभ बिना प्रयास गंज संघ पर भी मैं मदनगंज संघ के अध्यक्ष होने के किये अपने आप फैलती है वैसे ही जो महान् नाते अपनी ओर से तथा संघ की और से दीक्षा आत्माएँ होती हैं। उनके ज्ञानोपयोग, दर्शनोपयोग स्वर्ण जयन्ती के पावन पूण्य प्रसंग पर अपनी अनन्त और आत्मानुभूति की चर्चाएँ भी बिना प्रयास के आस्था समर्पित करता हैं मेरी यही हार्दिक कामना है दिगदिगन्त में फैलती है और उस मधुर सौरभ को है कि आप जैसी विदुषी साध्वियाँ ही विश्व को मानग्रहण करने के लिये भक्तरूपी भंवरे भी उनके चारो वता का दिव्य सन्देश प्रदान कर सकती हैं। और ओर मँडराते हैं। हमारा उद्वार एवं समुद्धार कर सकती हैं। परम विदुषी साध्वी रत्न पुष्पवतीजी इस प्रकार की साध्वी हैं, जिनका पावन दर्शन मंगलमय हैं। मदनगंज संघ पर तो उनकी अपार कृपा रही है। तेजोमय व्यक्तित्व की धनी मदनगंज में महासतीजी के तीन वर्षावास हुए है .- वियोगी श्री राधे राधे और एक वर्षावास किशनगढ़ हुआ। वर्षावास के अतिरिक्त भी महासतीजी का कारण विशेष से लम्बे (चिकलवास नाथद्वारा) समय तक मदनगंज में विराजने का लाभ मिला है। ___मैं ज्यों-ज्यों महासतीजी के सम्पर्क में आया परम विदुषी साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी भार त्यों-त्यों उनके सद्गुण मेरे को प्रभावित करते गए। तीय साध्वी परम्परा की सच्ची प्रतिनिधि हैं । मैंने कभी भी उनको उदास और हताश नहीं देखा आपका व्यक्तित्व प्रभावपूर्ण और आकर्षक है। उसमें और न उनके मन में किसी भी वस्तु की चाह है। पुष्प की तरह सुवास है । आपके जीवन में सरलता, मैंने अनेकों बार उनसे निवेदन किया। सदा एक ही विद्वत्ता, श्रद्धा और विवेक का अनूठा संगम हुआ है। उत्तर मिला कि सभी प्रकार से आनन्द हैं उनके पास सस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, राजस्थानी, न्याय, व्याकरण चाहे गरीब व्यक्ति जाए या चाहे धनवान, चाहे वद्ध आगम-निगम, धर्म और दर्शन, प्रभृति का आपको जाए, चाहे बालक जाए । सभी के प्रति उनका एक गहरा ज्ञान है । आप मधुरभाषिणी शान्तचेता और सदृश्यव्यवहार रहा है । वे सभी से प्रेम पूर्वक वार्ता- सदा प्रसन्नचित्त रहने वाली साध्वी हैं। आप सदा लाप करती है। इसीलिए सभी उनके प्रति नत है, स्वाध्याय, ध्यान, चिन्तन-मनन, अध्ययन-अध्यापन श्रद्धालु हैं। में लीन रहती हैं । मैत्री, करुणा, प्रमोद, माध्यस्थ . महापुरुषों के जीवन की यह अद्भुत विशेषता है कि भाव आपके जीवन के कण-कण में समाये हए हैं । जो भी उनके निकट संपर्क में आता है। वह उनसे यही कारण है आपके जीवन में कटुता और तीव्रता प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता मैं भी महासतीजी का अभाव है । आप मन से सरल हैं । आपकी वाणी के गुणों पर मुग्ध हैं। महासतीजी की अपार कृपा मधुर है। आपकी दृष्टि सार ग्राहिणी हैं। उसमें मेरे पर और मेरे परिवार पर रही है । तथा मदन- छिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति नहीं है । आप प्रत्येक व्यक्ति तेजोमय त्यक्तित्व की धनी १०५ www.jainelibi
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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