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साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
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-मोहनलाल सिन्धी, ब्यावर
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हमारा परम सौभाग्य है कि परम विदुषी पर वह जोश क्षणिक होता है।" मैं प्रवचन के एककी साध्वीरत्न पुष्पवतीजी जैसी विमल विभूति एक शब्द को ध्यान से सुन रहा था। मैंने जैन
हमारा पथ प्रदर्शन कर रही हैं। वे समता, साध्वी के दर्शन भी पहली बार ही किये थे और का सहिष्णुता, नम्रता, सरलता के द्वारा मानवता की प्रवचन भी पहली बार ही सुना था। मेरे हृदय में
प्रतिष्ठा करना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि एक आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। मुझे अपने पापों सद्गुणों की बेल पर ही मानवता के फूल विकसित की स्मृतियाँ आने लगी और मेरो आंखों से आँसू होते हैं । बिना मानवता के न श्रावकपन आता है बरसने लगे। प्रवचन समाप्त हुआ, सभी लोग और न साधूपन ही। यही कारण है कि प्राचीन नमस्कार कर चल दिये। पर मैं विचारों के सागर
मनीषियों के मार्गानुसारी गुणों का प्रतिपादन में ही गोते लगा रहा था। आज इस जगज्जननी 2 कर पहले गुण विकसित करने की प्रेरणा प्रदान ने मेरे नेत्र खोल दिये थे। की है।
जब लोग चले गये तब गुरुणी मैया ने मुझे मैं एक नम्बर का बदमाश था। मेरे जीवन पुकारा । भैया-क्या सोच रहे हो ? तुम्हारी आँखों में सभी दुर्गण थे। मेरा जीवन दुर्गणों का आगार से आँसू क्यों बह रहे हैं। क्या तुम्हें कुछ चिन्ता 2 था। मैं रात-दिन शराब पीने में मशगूल रहता है ? कहो, अपने हृदय की बात ? हम तुम्हारी
था । सन् १९६६ में गुरुणीजी का वर्षावास अजमेर बात का समाधान करेंगी। में हुआ। मैं शराब पिया हुआ था। मेरे एक मित्र मैंने कहा- मैं जैन नहीं हूँ। हम लोग सिन्ध ने मुझे कहा----क्या तू भी कथा में चलेगा ? मैं मित्र के रहने वाले हैं। जब सिन्ध में पाकिस्तान हो के साथ प्रवचन पण्डाल में पहुँच गया। गुरुणीजी का गया तो हमें विवश होकर यहाँ पर आना पड़ा। प्रवचन चल रहा था, वो बता रही थी कि "जीवन अब हम यहीं पर रह रहे हैं । बुरी संगति में पड़कर | एक नौका है । नौका में जरा सा छिद्र मेरे जीवन में सारे दुगण आ गये हैं। अब मेरा
हो जाये तो नौका में पानी भर जाता है। और कैसे उद्धार होगा ? आज मैंने पहली बार उपदेश वह नौका डूब जाती है। जीवन में भी जरा सा सुना । आपके उपदेश ने मुझे चिन्तन करने के लिए व्यसन का छिद्र हो जाये तो जीवन बर्वाद हो बाध्य किया है कि मैं मानव बना हूँ। पर मेरे कृत्य जाता है । जैसे कौवे को यदि कोई खाने की वस्तु तो दानव की तरह हैं। मैं आपकी शरण में आया डाली जाय तो कौवा कभी अकेला नहीं खाता। हूँ। आप मेरा उद्धार करें। गुरुणी मैया ने मुझे वह कॉए-कॉए कर अपने अन्य साथियों को भी प्रेम से समझाया। मैं उस दिन से प्रतिदिन उनके बुलाता है। वैसे ही दुर्गुण भी (यानि व्यसन) प्रवचन में जाने लगा । मेरा कायाकल्प हो गया। अकेला नहीं आता। वह अपने साथ अन्य व्यसनों पहले मैं समझता था कि शराब पीने से ताजगी को भी लेके आता है । व्यसन से जीवन खोखला अनुभव होती है। पर अब यह धारणा मिथ्या बन जाता है। उस समय जोश प्रतीत होता है, सिद्ध हो गई।
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मैं दानव से मानव बना । ७३
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