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সাহাকাল
__ श्रमणी-परम्परा के इतिहास में साध्वीरत्न महासतीजी श्री पुष्पवतीजी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। क्योंकि उनके जीवन के कण-कण में श्रमण भगवान् महावीर के दिव्य और भव्य सिद्धान्त मुखरित हैं। वे श्रमणियों की श्रृंगार हैं । मानवता के दिव्यहार हैं । ज्ञान और सेवा की दिव्य-ज्योति से उनका जीवन आलोकित है । वस्तुतः इस प्रकार की श्रमणियाँ आलोक-स्तम्भ की तरह आती हैं जो भूलेभटके जीवनराहियों को मार्ग-प्रदर्शन करती हैं ।
महासतीजी श्री पुष्पवतीजी का जीवन एक समर्पण का जीवन है । वे जन-जन में सुख, शान्ति स्नेह और सद्भावना का अमृत बाँटती रहती हैं। उन्हें आदान में नहीं, प्रदान में आनन्द आता है। ग्रहण में नहीं, समर्पण में उनका विश्वास है । तथापि श्रद्धा और भक्ति-भावना से उत्प्रेरित होकर हम उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने जा रहे हैं । वे अभिनन्दन ग्रन्थ स्वीकार करेंगी या नहीं, यह प्रश्न हमारे अन्तर्मानस में समुत्पन्न हो रहा है।
गतवर्ष यद्धय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० का वर्षावास ‘पाली' में था। मैं श्री देवेन्द्र मुनिजी के पास बैठा हुआ था, अन्य साहित्य प्रकाशन के सम्बन्ध में विचार-चर्चाएं चल रही थीं, उसी विचार-चर्चा में 'साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ' के सम्बन्ध में भी चर्चा चली, श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय का अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने मुझे यह दायित्व प्रदान किया, मैं गहराईसे विचार-मन्थन करता रहा और मुझे यह अनुभूति हुई कि 'अभिनन्दन ग्रन्थ' किसी विशिष्ट व्यक्ति के माध्यम से निकाले जाते हैं, जिस व्यक्ति के माध्यम से निकाले जाते हैं, उनका तो अभिनंदन होता ही है, साथ विशिष्ट सामग्री उस माध्यम से सँकलित हो जाती है, जो जनता जनार्दन के लिए अतीव उपयोगी होती है। अभिनंदन ग्रन्थ एक प्रकार से धर्म, दर्शन, साहित्य और संस्कृति के ऐसे अक्षयकोष होते हैं, जिनकी तुलना करना कठिन है, उसमें मूर्धन्य मनीषियों के विचारों का नवनीत होता है।
____ अभिनंदन ग्रन्थ के माध्यम से मूर्धन्य मनीषी ऐसे उत्तम साहित्य की सर्जना करते हैं, जो ज्ञानपिपासुओं के लिए वरदान रूप होता है । ग्रन्थ का समर्पण श्रमणीरत्न के लिये नहीं, अपितु उन आत्माओं के लिए है, जो ज्ञान और विचार की प्यासी है । महासती पुष्पवतीजी जन-जन की श्रद्धा केन्द्र हैं। इसलिए उनके माध्यम से हम प्रस्तुत ग्रन्थ के द्वारा वह उत्कृष्ट और मौलिक सामग्री जन-जन तक पहुँचाने के लिए तत्पर हुए।
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