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-काव्यमनीषी प्रवर्तक रूपचन्दजी म. "रजत"
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అంతంణంగాణ
महासती पुष्पवती, ज्ञानरति गुणरूप । वाक विलास विद्यावती, स्वच्छमति सतीरूप ॥१॥
जगती में जो जैन धर्म को, सतत दिपाती जाती । आर्या पुष्पवती जी पावन,
महासती कहलाती ॥२॥ प्रेमकुंवर
आपकी माता। पिता सेठ जीवन प्यारे, ओसवाल बरडिया जैन थे, श्रावक
स्वीकारे ॥३॥
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ຈະປະຢູ່ໃນtao ສາທ້ອງຟ້ອງຈາກ
स्वच्छ म ति है म हा स ती
जिनकी पावन परम कृपा से । पंच महाव्रत धारे, उपाध्याय श्री पुष्कर गुरुवर । मुनिवर महिमा वारे ॥४॥
सब
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निश्छल निर्भय भक्त जाती
निश्चिन्त सदा ही।
हित-कारी॥ मण्डली सूनकर वाणी।
बलिहारी ॥शा
जयी कहे जीवन ज्योतिर्मय । संयम सम सद् भावना। 'रजत' कृपा पाकर गुरुओं की ।। "पुष्प" खिले नित पावना ॥६॥
"अमर" विकशित "सुवर्ण" सुरभित
अलौकिक
बाग टहनी "पुष्प"
उपवन विषे,
विनोद । पै टीररहा । मन मोद ॥७॥
स्वच्छमति है महासती | ५१
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