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साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
महासती श्री पुष्पवती जी।
डटकर करती धर्म-प्रचार ।। जप-तप ज्ञान, ध्यान पर उनके ।।
आज हुई दुनिया बलिहार ।
नामी वह मेवाड़ प्रान्त का,
राज्य बहुत ही हर्षा था। उस दिन मानो मेघ खुशी का,
हर घर डटकर वर्षा था।
......
उगनीसौ इक्यासी की शुभ ।।
मिगसिर कृष्ण जब थी सात ।। जीवनसिंह बरड़िया हर्षे ।
हर्षी "प्रेम कुमारी" मात ॥
"सोहन कुंवर" सती अति विदुषी,
फूली नहीं समाई थी भाग्य योग से योग्य सुशिष्या,
अनायास ही पाई थी
।
।
(६)
नहीं आप से कमती कोई,
प्रेमकुमारी माता थी। महासती जो "प्रभावती" बन,
हुई बहुत विख्याता थी।
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिवर,
__बने आपके गुरुवर जैनागम के विद्याओं के,
जो हैं सच्चे सागर
जी।
जी ।।
श्री पुष्प-प च्ची सी |-कविरत्न श्री चन्दन मुनि(पंजाबी)
पढ़-लिखकर हुशियार हो गईं, __अभी न बचपन बीता था। पांच इन्द्रियां और प्रबल मन,
भली भांति पर जीता था ॥
विदुषी बड़ी बनाया डटकर,
सोया जगत जगाने को। जैन धर्म के सत्य अहिंसा,
तत्त्वों को समझाने को ।
सचमुच नाम आपका घर का, ___'सुन्दर' सुन्दर भारी था । 'सुन्दर' शब्द अगर था पहले,
पीछे शब्द 'कुमारी' था ।
श्रमणसंघ के सुज्ञ उपाचार्य,
शास्त्री मुनि देवेन्द्र कुमार । अनुज आपके जैन जगत के, लेखक वक्ता धूआंधार ।।
( १२ ) सादर उनको देते रहना,
अपनी मधुर-मधुर आशीष । जिससे उन्नत और समुन्नत,
बने और भी विश्वाबीस ॥
उगनी सौ चुरानवें जब सुदि, ___माघ त्रयोदश आई धूम-धाम से नगर उदयपुर, ___ में दीक्षा अपनाई
थी ।
थी।
श्री पुष्प पच्चीसी | ४६
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