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भागों का प्रकाशन भी सभा की ओर से हुआ है। जैन दर्शन के कई अंग्रेजी संस्करण सभा ने प्रकाशित किए हैं। श्रीमद् विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी के प्रसंग पर उनकी पुस्तक 'जैन धर्म विषयक प्रश्नोत्तर' का प्रकाशन सभा के अर्थ सहयोग से हो रहा है।
साधर्मिक उत्कर्ष और साहित्य प्रकाशन के अतिरिक्त सभा संगठन का महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। बम्बई में बसने वाले राजस्थानी, गुजराती और पंजाबी गुरूभक्तों के संगठन का सूत्रधार सभा ही है । सभा ने उन सभी भक्तों को एक मंच पर लाकर खड़ा किया है । सभा को अपने कार्य और नये आयोजन-उत्सव और समारोहों में उन सभी गुरूभक्तों का अपूर्व सहयोग मिलता है।
सभा की ओर से आद्य प्रेरक आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज की स्वर्गवास तिथि प्रतिवर्ष बड़े समारोह पूर्वक मनाई जाती है।
श्री जैन आत्मानंद सभा, भावनगर जैन समाज में पंजाब देशोद्धारक, नवयुग निर्माता, महान ज्योतिर्धर न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज के नाम से जितनी भी शिक्षण संस्थाएं और सभाएं हैं उनमें सबसे अधिक पुरानी संस्था भावनगर की 'श्री जैन आत्मानंद सभा' है।
शत्रुजय महातीर्थ से पचास कि.मी. की दूरी पर पूर्व दिशा की ओर भावनगर बसा हुआ है। सौराष्ट्र का यह प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है । यह अरबी समुद्र के तट पर बसा हुआ है। व्यापार के साथ-साथ यह साहित्य, संस्कृति, कला, संस्कार और शिक्षा का भी केन्द्र रहा है। यहां के लोग धार्मिक, विद्याप्रेमी, शिक्षित, उदार और आर्थिक रूप से समृद्ध माने जाते हैं।
इस भावनगर का सौ वर्ष का धार्मिक इतिहास न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज के साथ जुड़ा हुआ है। ई. सन् १८७६ में उन्होंने यहां चातुर्मास किया था। इस समय इस चातुर्मास के एक सौ अट्ठारह वर्ष हो चुके हैं। उस समय उन्हें स्थानकवासी सम्प्रदाय को त्याग किए केवल एक ही वर्ष हुआ था। प्राचीन विशुद्ध जैन धर्म की मूर्ति मान्य प्राचीन श्रमण परंपरा को स्वीकार करके उन्होंने पहला चातुर्मास अपने गुरू श्री बुटेरायजी के साथ अहमदाबाद में किया था और दूसरा भावनगर में।
दि. २०-५-१८९६ को गुजरानवाला में आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज का स्वर्गवास हुआ। उस समय भावनगर श्रीसंघ ने गहरा दुःख अनुभव किया। उस दिन भावनगरं श्रीसंघ ने एक श्रद्धांजली सभा का आयोजन किया। उस सभा में सभी ने यह निर्णय ४१८
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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