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दूसरी श्री आत्मानंद जैन सभा। दोनों ही संस्थाएं इस समय अपनी उन्नति और विकास के शिखर पर है। अपनी स्थापना से लेकर आज तक बम्बई की ये दोनों संस्थाएं अविराम आगे बढ़ती रही है। इस समय दोनों संस्थाओं ने विशाल वटवृक्ष का रूप धारण कर लिया है। दोनों संस्थाएं गुरूदेवों के आदर्शों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सदैव अग्रगामी रही है।
न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज के नाम से कार्यरत 'श्री आत्मानंद जैन सभा' की स्थापना वि.सं. १९९७ में हुई थी। इसके प्रमुख उद्देश्य आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज के विचारों के अनुरूप साधर्मिक मध्यम वर्गीय जैन बन्धुओं का उत्कर्ष, सेवा, संगठन और जैन साहित्य का प्रचार और प्रसार करना है। ____ बम्बई के साधर्मिक मध्यम वर्गीय जैन भाइयों के लिए सभा ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय कार्य किया है ।महावीर नगर कांदीवली में साधर्मिक भाइयों के लिए सभा ने ३४४ ब्लॉक बंधवाए हैं। उसी प्रकार नालासोपारा नाम के उपनगर में आत्म वल्लभ समाज उत्कर्ष ट्रस्ट की स्थापना करके उसके अन्तर्गत २३ मकान बंधवाकर साधर्मिक भाइयों को अर्पित किए हैं। २३ मकानों में ५०० ब्लॉक हैं। वहीं पर साधर्मिक भाइयों के लिए एक हॉस्पिटल भी चलता है। उसी में उद्योग गृह का आयोजन भी हुआ है।
___ मध्यम वर्गीय बन्धुओं पर अचानक आए आर्थिक संकट और असाध्य रोगों के इलाज के लिए यह सभा उदार आर्थिक सहयोग देती है।
बम्बई के ६०० मध्यम वर्गीय परिवार ऐसे हैं जिनके पालन-पोषण और अर्थ व्यवस्था की जिम्मेवारी सभा ने ली हुई है। इन ६०० कुटुम्बों के लिए सभा एक पालक माता-पिता की भूमिका निभाती है । सभा के कार्य की विशेषता यह है कि वह उन सभी परिवारों और व्यक्तियों के नाम गुप्त रखती है जिन्हें वह सहयोग देती है।
सभा ने साधर्मिक भक्ति फंड के अन्तर्गत बम्बई के १०० मंदिरों में पेटियां रखी हुई है। इन पेटियों में से जो पैसे प्राप्त होते हैं उन्हें मध्यम वर्गियों में वितरीत किए जाते हैं।
इस तरह सभा सच्चा साधर्मिक वात्सल्य करती है। जैन धर्म और समाज में इस तरह के साधर्मिक उत्कर्ष का महान कार्य करने वाली यह एक मात्र संस्था है।
श्री आत्मानंद जैन सभा, बम्बई का दूसरा महान कार्य जैन साहित्य का प्रकाशन है। अब तक सभा की ओर से चालीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी वल्लभ प्रवचन का गुजराती अनुवाद करवाकर सभा ने प्रकाशित किया है। महुवाकर द्वारा लिखित 'युगवीर वल्लभ' के छह
श्रीमद् विजयानंद सूरि (आत्मारामजी) के नाम से चलने वाली शिक्षण संस्थाएं एवं सभाएं।
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