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पंजाब में सात हजार श्रावकों को अपने विचारों से सहमत बना लिया था।
पंजाब में चार प्रकार के जैन हैं—ओसवाल, खंडेलवाल, अग्रवाल और अहलूवालिया। उनमें अग्रवाल जैन मालेरकोटला में रहते हैं। यहां साध्वी श्री देवश्री जी की प्रेरणा से एक कन्या पाठशाला स्थापित हुई थी, किन्तु किन्हीं कारणों से यह पाठशाला बंद हो गई।
इसके कुछ वर्षों के बाद पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी लाहौर से मालेरकोटला पधारे । आचार्य पदवी ग्रहण करने के बाद वे प्रथम बार यहां आए थे। इसलिए मालेरकोटला श्रीसंघ ने उनका भव्य स्वागत किया।
__ अपनी स्वागत सभा में उन्होंने यहां मालेरकोटला में गुरू आतम के नाम से एक विद्यालय स्थापित करने की प्रेरणा की। परिणाम स्वरूप यहां श्री आत्मानंद जैन लोअर प्राइमरी स्कूल' की स्थापना हुई। इसके पांच वर्ष के बाद स्कूल ने अपने लिए एक भवन बनाया । ई. सन् १९३२ में इस स्कूल को मिडिल स्कूल का रूप दिया गया। धीरे-धीरे यह विद्यालय विकास करते हुए श्री आत्मानंद जैन उच्च माध्यमिक विद्यालय बना । इस समय विद्यालय के पास विशाल भवन है, प्रयोगशाला और पुस्तकालय है। केवल मालेरकोटला में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण पंजाब में इस विद्यालय का सर्वोपरी स्थान है।
श्री आत्मानंद जैन सभाएं
श्री आत्मानंद जैन महासभा (उत्तरी भारत) विश्व वंद्य विभूति, महान ज्योतिर्धर, नवयुग निर्माता, न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज की सबसे बड़ी देन है- उत्तर भारत के जैन समाज को जैन धर्म की शास्त्रीय प्राचीन परंपरा का अनुयायी बनाना। जिन शासन की प्रभावना का यह उनका सबसे महान कार्य है।
पंजाब (उत्तरी भारत) उनकी जन्म स्थली, कार्यस्थली और स्वर्गवास स्थली भी है। उनके जीवन का सबसे अधिक समय इसी भूमि पर बीता है । उन्हीं की प्रेरणा से यहां मंदिरों का वैभव दृष्टिगत हुआ। विधिवत रूप से श्रीसंघों की स्थापना हुई और सर्वत्र शुद्ध सनातन जैन धर्म का ध्वज लहराना संभव हो सका।
गुरू आतम ने यदि पंजाब में जैन धर्म का बीज बोया था तो पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज ने उस बीज का संवर्धन किया था। उन्हीं की
श्रीमद् विजयानंद सूरि (आत्मारामजी) के नाम से चलने वाली शिक्षण संस्थाएं एवं सभाएं
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