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पर स्थापित किया। सन् १८९३ में विश्व के सभी प्रचलित धर्मों की एक कांग्रेस अमेरिका के चिकागों नगर में आयोजित की जा रही थी । इस कांग्रेस में विश्व भर के धार्मिक पुरोधाओं को आमंत्रित किया गया था। हमारे परम पूज्य महान क्रांतिकारी जैनाचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी म. सा. प्रसिद्ध नाम श्री आत्मारामजी को भी इस धर्म सभा में उपस्थित रहने के लिये आमंत्रित किया गया था पर चूंकि जैन साधु का आचार समुद्र यात्रा के लिए निषेध का था अत: आचार्य श्री तो उस धर्म सभा में उपस्थित हो नहीं सकते थे पर उनकी उत्कट इच्छा थी कि इस धर्म सभा में जैन धर्म का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिये ताकि पाश्चात्य विश्व इस महान धर्म के बारे में आधिकारिक रूप में जान सके । उन्हें जब आमंत्रण पत्र मिला तो उन्होंने जैन एसोसियेशन आफ इंडिया बम्बई को एक पत्र लिखा कि वे ऐसे किसी विद्वान एवं समर्पित व्यक्ति का नाम सुझावे जो अमेरिका जाकर जैन धर्म का उनकी तरफ से प्रतिनिधित्व कर सके। पत्र प्राप्त कर सबकी दृष्टि श्री वीरचन्द भाई की ओर गई जो अपने धार्मिक दर्शन, गहन ज्ञान और विद्वत्ता के लिये सुविख्यात थे । आचार्य श्री को उनका नाम भेजा गया। आचार्य महाराज श्री ने उन्हें अपने पास अमृतसर में बुलाया और एक महीने तक अपने पास रक्खा और जैन धर्म के बहुत से ज्ञातव्य विषयों से भली भांति परिचित कराया और अपना स्वयं का निबंध, 'चिकागों प्रश्नोत्तरी' लिख कर अपने अमोघ आशीर्वाद के साथ विदा किया। विदा के समय आचार्य श्री ने उन्हें तीन प्रतिज्ञायें भी दिलवाई। वे विदेश प्रवास के दौरान ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेंगे। शुद्ध आहार का उपयोग करेंगे और स्वदेशी वस्त्र ही पहनेंगे। श्री गांधी ने उपर्युक्त प्रतिज्ञाओं का पाश्चात्य यात्रा में मन, वचन एवं काया से पालन करने का नियम धारण किया और पूज्य गुरुदेव से वासक्षेप प्राप्त कर बम्बई के लिये प्रस्थान किया। बम्बई श्रीसंघ ने उन्हें अत्यंत भावभीनी विदाई दी।
सर्वधर्म परिषद का अधिवेशन सितम्बर १८९३ में प्रारंभ हुआ और लगातार सत्रह दिन तक चलता रहा। आचार्य श्री के इस विद्वान प्रतिनिधि ने जिस योग्यता के साथ अपना पक्ष प्रस्तुत किया और उससे वहां की जनता पर जो प्रभाव पड़ा, उसका एक नमूना इन शब्दों में प्रतिबिंबित होता है।
“A mumber of distinguished Hindu Scholars, philosophers and religious teachrs attended and addressed the Parliament Sameof them taking rank with the highest of any race for learning,
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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