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साहित्य जहां एक जाति और राष्ट्र की तत्कालीन अवस्था का परिचय देने का काम करता है वहां साहित्यकार की अंतरात्मा का यथार्थ चित्र भी पाठक के समक्ष समुपस्थित करता है साहित्य के माध्यम से ही जातियों के उत्थान-पतन की क्रमिक कहानी का कथन किया जा सकता है । जिस जाति का अपना साहित्य नहीं, अथवा वह सुरक्षित नहीं, उसकी गिनती प्रगतिशील जीवित जातियों में नहीं हो सकती । साहित्य मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर, निराशा से आशा की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर, पतन से उत्थान की ओर तथा बंधन से मुक्ति की ओर प्रेरित करता है ।
आचार्य आत्मारामजी म. सा. द्वारा लिखित साहित्य विशाल, गम्भीर, समृद्ध, विद्वतापूर्ण एवं ज्ञाननिधि रूप है । उनकी शैली विषय-प्रतिपादक और खण्डन- मण्डन युक्त थी । अध्ययन जन्य सुविधाओं के अभावों के बीच भी गहन अध्ययन करके गुरु प्रवर ने प्राप्त प्रामाणिक ग्रंथ सामग्री के आधार पर लोकभाषा में सार्थक साहित्य का सृजन किया ।
सामान्यतया पारिभाषिक शब्दों की भरमार के कारण ग्रंथों में सहजभोग्यता का अभाव पाया जाता है। ऐसे ग्रंथ समाज में लोकभोग्य नहीं बन पाते हैं, लेकिन गुरुदेव आत्मानंद जी के द्वारा प्रणित ग्रंथ पूर्णतः धार्मिक एवं दार्शनिक होते हुए भी उन्होंने बड़ी मुश्किल से समझ में आने वाली विषम दार्शनिक बातों को भी ऐसी सरल, सुबोध एवं बुद्धिगम्य शैली में प्रस्तुत किया है कि पाठक के लिए सहज सुबोध हो जाती है। उनका साहित्य मर्मज्ञ विद्वान एवं सामान्य जिज्ञासु दोनों को तृप्ति प्रदान करता है । आपने पद्य एवं गद्य दोनों रूपों में अपनी समर्थ लेखनी का चमत्कार दिखाया है ।
(अ) पद्य- गुरुवर आत्मानंद जी महाराज ने हिन्दी में अनेक स्तवन, भजन एवं पूजा गीतों की रचना करते हुए अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया है। आपकी पद्य रचनाएं इस प्रकार
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(क) आत्म बावनी, (का) स्तवनावलि, (कि) सत्तराभेदी पूजा, (की) अष्ट प्रकारी पूजा (कु) नवपद पूजा (कू) स्नात्र पूजा ।
हिन्दी में नवीन राग-रागिनियों में पूजा और स्तवन की रचना का सर्व प्रथम श्रेय गुरुदेव को मिलता है । आपने काव्य रचना ब्रजभाषा में की है तथापि इसमें पंजाबी, मारवाड़ी एवं गुजराती के शब्दों का विपुल प्रयोग मिलता है । इनमें भक्ति, वैराग्य एवं करुणा कूट कूट कर
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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