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है कि यदि केन्द्र ग्रह रहित हो और समस्त ग्रह उपचय और वणर्क में हों तो भी एक प्रकार का राज योग होता है जो केन्द्र स्थित शुभ ग्रह जैसा ही महत्त्व का होता है महाराज आत्माराम जी की कुण्डली में समस्त ग्रह दूसरे, तीसरे, छठे और नवम् भाव में स्थित है । अत: यह शुभ सूचक है। शुभ ग्रह गुरु और शुक्र जो देवाचार्य और दैत्याचार्य कहलाते हैं, पर्याप्त बलवान हैं। गुरु लाभाधिपति तथा धनपति होने से शुभ भावों का स्वामी है और वाक् पटुता भी देता है। शुक्रसुखाधिपति तथा भाग्याधिपति और कुम्भ लग्न वालों के लिये योग कारक माना जाता है। वह द्वितीय भाव में उच्च का होकर अवस्थित है । नवम अर्थात् भाग्य भाव में उच्च का शनि मित्र क्षेत्री है अत: धीरे धीरे भाग्य की अभिवृद्धि करता है। शनि प्रबल वैराग्य का भी विधाता माना जाता है । भाग्येश शुक्र ने जो उच्च है आत्मारामजी को सदा विजयी और यशस्वी बना रखा।
पाप ग्रह राहु तृतीय स्थान में चन्द्र के साथ है, जिससे ग्रहण योग बनता है जो शुभ नहीं कहा जाता और जीवन में सतत् संघर्ष का द्योतक है । परन्तु ज्योतिष का एक नियम यह भी है कि तृतीय भाव में शत्रु क्षेत्री राहु प्रबल भाग्य वर्धक और शुभफलदाता होता है। केतु जो ज्योतिष में कजवत अर्थात् मंगल समान माना जाता है। शनि के साथ नवम भाव में युति कर रहा है जो मंत्रेश्वर के अनुसार दरिद्र तथा पितृ-सुख हीन करता है। महाराज साहिब का प्रारम्भिक जीवन इस बात की पुष्टि करता है । बाल्य काल में ही उन्हें पिता के स्नेह से वंचित होना पड़ा था।
ज्योतिष शास्त्र की मान्यता है कि कुण्डली में यदि शुभ योग हों तो बालक होनहार होता है। महाराज साहिब की कुण्डली में भी कतिपय बलवान शुभ योग हैं। सर्व प्रथम संख्या योग को लें तो हमें कुण्डली में केदार योग परिलक्षित होता है । जिस कुण्डली में समस्त ग्रह चार भावों में स्थित हों, वहां केदार योग का नाम दिया जाता है । इसके लिये कहा है
सुवहनामुपयोज्या: कृषिवला: सत्यवादिन: सुखिन् ।
केदारे सम्भूताश्च स्वभावा धनैयुक्ता ॥ अर्थात्- केदार योग वाला उपकारी, जन्म से कृषि कर्ता, सत्यवादी, सुखी, धनी और प्रबल संचालक होता है।
कुण्डली में दूसरा योग शंख योग है । यदि लग्नेश तथा कर्मेश दोनों चर राशि में हो और भाग्येश बलवान हो तो शंख योग होता है। महाराज साहिब की कुण्डली में लग्नेश शनि और कर्मेश मंगल दोनों ही तुला और कर्क (जो चर राशियां है) राशियों में स्थित हैं। भाग्येश शुक्र उच्च का हो कर धन भाव में स्थित है और भाग्य स्थान में उच्च का शनि स्थित है। लग्न भी ३२८
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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