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राजा होकर यह काम करोगे तो लोक तुम्हारी निन्दा ही करेंगे।
आचार्य श्री ने इतने स्नेह और इतनी आत्मीयता से यह बात कही कि वह उस आदिवासी के मन में बैठ गई। उसे आज तक प्रेम से राजा कहने वाला कोई नहीं मिला था उसने स्वयं को सचमुच राजा अनुभव किया। बरबस उसके काले कलूटे मुँह पर मुस्कराहट फैल गई। उसने निकाले गए बाण को तरकस में रखा और धनुष की डोरी ढीली करदी। फिर कहा- हम तुम्हारा राजा है, हम तुम्हारा रक्षण करेगा और रास्ता बताएगा। और उसने मुनि मण्डल को गाँव की सीमा तक पहुँचा दिया। सच्चे साधु
__आचार्य श्री विजयानंद सूरि म. को स्थानकवासी दीक्षा छोड़कर गुजरात में आए अभी थोड़े ही दिन हुए थे। उन्होंने बुटेराय जी म. का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया था। उस समय शान्तिसागर जी म. का गुजरात में नाम था।
वे इस बात का प्रचार करते थे कि इस समय सच्ची साधुता कहीं नहीं है। आज कल के साधु सच्चे साधु नहीं है। आचार्य श्री विजयानंद सूरि म. को यह बात अनुचित लगी। उन्होंने अपने गुरु से इस विषय की चर्चा की।
बुटेराय जी म. जो बहुत ही सरलात्मा थे, कहा :- मैं तुम्हारी तरह पढ़ा लिखा नहीं हूँ अगर तुम आगमों के रहस्यों को जानते हो तो शान्ति सागर जी से चर्चा करो। तुम दोनों की चर्चा के बाद जो निष्कर्ष निकलेगा । उसका निर्णय मैं करूँगा।
शान्तिसागर जी म. को चर्चा के लिए तैयार किया गया। अहमदाबाद में यह चर्चा होनी निश्चित हुई । तिथि और समय निश्चित हुए । वहाँ स्थानीय विद्वान मुनि एवं श्रावक भी चर्चा में सम्मिलित हुए। दोनों महापुरुष आमने सामने बैठे और चर्चा का सूत्रपात हुआ। विजयानंद सूरि म. ने पहला प्रश्न किया :- आज कोई साधु ही नहीं है यह आप किस आधार पर कहते हैं।
शान्तिसागर :- स्थानांग सूत्र के आधार पर । विजयानंद सूरि :- आपने अन्य कौन-कौन से सूत्रों का अध्ययन किया है। शान्तिसागर :- सूत्र तो बहुत कम पढ़े हैं।
विजयानंद सूरि :- अच्छा, अब यह बताइए कि आपने किस गुरु-या पंडित से अध्ययन किया है।
शान्तिसागर :- शास्त्री रामचन्द्र दीनानाथ से । श्री विजयानंद सूरि: जीवन प्रसंग
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