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से हुआ । उनका यह परिचय मित्रता में बदल गया और मित्रता वैवाहिक सम्बन्धों में ।
अब तक गणेशचन्द्र अविवाहित थे । उनका अपना अब तक का जीवन युद्ध में पराक्रम और वीरता दिखाने में ही बीता था। अपने विवाह के विषय में उन्होंने कभी सोचा नहीं था ।
कंवरसेनजी की एक कन्या थी, जिसका नाम रुपादेवी था । गणेशचन्द्र की वीरता, सज्जनता और उज्ज्वल भविष्य देखकर कंवरसेन ने गणेशचन्द्र को अपनी बेटी स्वीकार करने की प्रार्थना की। गणेशचन्द्र अपने मित्र को मना नहीं कर सके और रुपादेवी के साथ उनका विवाह हो गया ।
कुछ वर्षों के बाद रामनगर से गणेशचन्द्र का स्थानान्तरण सतलज और व्यास के संगमस्थल हरि के पतन क्षेत्र में हो गया । इस क्षेत्र की सुरक्षा करते हुए उन्होंने यश, प्रतिष्ठा और धन आदि सब कुछ प्राप्त किया। उनके स्वभाव की विशिष्ठता के कारण प्रत्येक व्यक्ति उनसे मित्रता का हाथ बढ़ाता था ।
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हरिके पत्तन में एक प्रतिष्ठित जमींदार रहते थे । गणेशचन्द्रजी से उनकी गहरी मित्रता हुई । दारी बहुत सी जमीन जीरा नगर के निकट स्थित लहरा गांव में भी थी ।
गणेशचन्द्र कुछ वर्ष हरिकेपत्तन रहे थे कि फिर उनके स्थानान्तरण का आदेश आ गया । यही बात गणेशचन्द्र को नापसंद थी । वे किसी एक ही स्थान पर स्थाई होना चाहते थे । युद्ध, युद्ध और केवल युद्ध से उनका मन उकता गया था। वे अब शांति और निश्चितता पूर्वक जीना चाहते थे । उन्होंने अपनी यह इच्छा उस जमींदार मित्र के समक्ष व्यक्त की। उसने उन्हें लहरा आने का निमंत्रण दिया और गणेशचन्द्रजी अपने सेनापति पद से त्यागपत्र देकर पत्नी रुपादेवी के साथ लहरा आ गए। यहां उन्होंने कृषि के लिए जमीन खरीदी। सोलह वर्ष तक युद्ध से खेलने के बाद उन्होंने व्यवस्थित रुप से घर बनाया और शान्ति, सुख तथा संतोष पूर्वक जिंदगी बसर करने का सपना संजोकर जीवन प्रारंभ किया ।
इस बीच उस दम्पत्ति के घर एक प्रतापी पुत्र का जन्म हुआ । वि. सं. १८९४ चैत्रसुदी प्रतिपदा का वह दिन था। गुजराती पंचांग के अनुसार वि. सं. १८९३ । ई. सन् १८३७ गुरुवार । उत्तर भारत में इसी दिन से नूतन वर्ष का आरंभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह दिन परम मांगलिकता का सूचक है। इससे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था कि इस महत्त्वपूर्ण वर्ष के दिन अवतरित होने वाला बालक निश्चिय ही कोई महान दिव्य पुरुष होगा । पहले पुत्र के जन्म के समय, जो उत्सव और आनंद परिवार में मनाया जाता है । वही आनंद और
श्रीमद् विजयानंद सूरिः जीवन और कार्य
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