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(३) दीक्षा के प्रसंग पर केवल एक दिन एक समय मिठाई दी जाए। शेष दिनों में सादा
भोजन ।
(४) धार्मिक प्रसंगों में सांसारिक व्यवहार को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए। अर्थात् सगे संबंधियों के मिलने पर भेंट आदि देने की प्रथा बंध की जाती है ।
इन प्रस्तावों के अतिरिक्त विवाह आदि अवसरों पर खर्च कम करने बारातियों की संख्या घटाने आदि के विषय में भी कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकृत किए थे ।
उस काल की परिस्थिति में ये सुधार क्रांतिकारी थे ।
जैन समाज में वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए मार्गदर्शन दिया, एवं पतन की ओर जाते हुए समाज को बचाया ।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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