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बहती है, वृक्ष जैसे दूसरों के लिए फलते और पकते हैं, सरोवर जैसे दसरों के लिए पानी संचित करता है, मेघ जैसे दूसरों के लिए बरसता है और दीपक जैसे दूसरों के लिए प्रकाशित होता है वैसे ही महापुरुषों का व्यक्तित्व होता है जो दूसरों के लिए बहता है, दूसरों के लिए फलता है, दूसरों के लिए बरसता है और दूसरों के लिए प्रकाशित होता है।
श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज का समग्र जीवन, कार्य और व्यक्तित्व जैन धर्म, दर्शन, साहित्य, शिक्षा और समाज को समर्पित था। उनके जीवन का हर पहलू और प्रत्येक छोटे-बड़े कार्य की दिशा उनके विराट् व्यक्तित्व की साक्षी है। उनके जैसे विराट व्यक्तित्व का अवतरण उस समय की आत्यान्तिक मांग थी।
सूर्य के प्रचंड तेजस्वी स्वरूप जैसा विराट और तेजोमय व्यक्तित्व है विजयानंद सूरि महाराज का। चारों ओर गहन अंधकार का साम्राज्य छाया हो, सारा संसार अंधकार में डूबा हो तब सूर्योदय होते ही अंधकार का साम्राज्य समाप्त हो जाता है और एक बारगी ही सारे संसार में प्रकाश की चेतना का संचार हो जाता है। प्रमाद का त्याग कर सभी उद्यम में लग जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य तभी तक है जब तक कि सूर्य का उदय नहीं होता।
श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज सूर्य बनकर उदित हुए और अशिक्षा और अज्ञान के, अन्याय और उधर्म के, प्रमाद और निष्क्रियता के, विरोध और विद्वेष के तथा जड़ता और भ्रांति के अंधकार को समाप्त कर सर्वत्र ज्ञान और कर्तव्य का उद्यम और कर्मण्यता का तथा मैत्री और सद्भाव का प्रकाश प्रकाशित कर गए।
असत्य के स्थान पर उन्होंने सत्य की प्रतिष्ठा की। स्थानकवासी दीक्षा होने के बाद आगमों के अध्ययन से उन्हें ज्ञात हुआ कि जैन धर्म के जिस सम्प्रदाय में मैं दीक्षित हुआ हूं वह भगवान महावीर भाषित परंपरा का प्रतिनिधि नहीं है। जिस मार्ग पर मैं चल रहा हूं वह वास्तविक और सत्य मार्ग नहीं है तो उन्होंने उस मार्ग का शीघ्र परित्याग कर दिया।
अहमदाबाद में श्रीशान्ति सागरजी नाम के साधु आगम विरुद्ध असत्य बातें कर लोगों का मतिभ्रम कर रहे थे । सत्य के पूजारी श्री विजयानंद सूरि महाराज यह कैसे सह सकते थे उन्होंने श्री शान्ति सागरजी को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा और दो तीन प्रश्नों में ही उन्हें निरुत्तर कर दिया।
सूरत में हुक्म मुनि नाम के साधु ने 'आध्यात्म-सार' पुस्तक में आगम विरुद्ध बातें लिखी थी। पूज्य श्री विजयानंद सूरि महाराज ने उस पुस्तक को पढ़ा और कुछ प्रश्न लिखकर हुक्म
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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