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गुरु विजयानंद : एक विराट् व्यक्तित्व
___- आचार्य श्री विजय जगच्चन्द्र सूरि संसार में कुछ विरल व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनकी छाप अमिट होती है। ऐसा व्यक्तित्व अमृतधारा से अभिसिंचित होता है । एक शताब्दी की क्या हस्ति है उसे हजारों शताब्दियाँ भी मिटा नहीं पाती।
ऐसा ही अमिट व्यक्तित्व है पंजाब देशोद्धारक, न्यायाम्भोनिधि, नवयुग निर्माता, विश्व वंद्य विभूति आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज का जिनकी स्वर्गारोहण शताब्दी हम मना रहे हैं।
एक शताब्दी पूर्व उन्होंने अपना नश्वर शरीर छोड़ कर स्वर्ग का आरोहण किया था। सौ वर्ष की अवधि बहुत लम्बी अवधि होती है । असंख्य जीवनों को समय स्मृति शेष कर देता है।
समय का अधिकार केवल व्यक्ति के नश्वर शरीर पर है। परंतु मनुष्य केवल शरीर नहीं होता । शरीर तो जीवन का एक स्थूल धरातल है । उसी शरीर में सुप्त रहता है अनंत ज्ञान, दर्शन
और चारित्र से युक्त आत्मा । आत्मा का परम तेजस्वी स्वरूप । अक्षय गुणों का आगार । जिन गुणों से व्यक्ति हजारों शताब्दियों तक जीवित रहता है। समय का उस पर कोई प्रभाव पड़ता नहीं है।
मनुष्य के स्वार्थ की परिधि जितनी विस्तीर्ण होती है उतना ही उसका व्यक्तित्व सीमित होता है। महापुरुषों का जीवन स्वार्थ की परिधि में आबद्ध नहीं होता। नदी जैसे दूसरों के लिए
गुरु विजयानंद : एक विराट व्यक्तित्व
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