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इतनी विनती और गुजरात से प्रमुख संघ प्रधानों का ऐसा पत्र मिला, तो मेरा भी मन बदल गया और मैंने निश्चय कर लिया कि गुरु चरण सेवा छोड़कर कहीं न जाऊँगा। मुनि श्री राजविजय जी श्री मोती विजयजी आदि के साथ विहार कर लुधियाना और जालंधर होते हुए होशियारपुर पहुंच कर पूज्य गुरुदेव के चरणों में सिर रखा । गुरुवर मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए. मुस्करा कर बोले, “पंडित हो आया ।"
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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