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उठा सकता । पालीताणा जाना तो बहुत बड़ी बात है।”
श्री वीर विजयजी बोले- “आचार्य श्री जी की आज्ञा की तुम चिन्ता मत करो। यदि तुम्हारी जाने की इच्छा होगी तो मैं आज्ञा मँगवा दूंगा। आचार्य श्री जी की तुम पर पूर्ण कृपा है। वे तो चाहते ही हैं कि तुम पढ़कर तैयार हो जाओ, ताकि उनके बाद पंजाब की रक्षा कर सको।" श्री वीरविजयजी ने प्रयास करके गुरु आतम का आज्ञापत्र भी मंगा लिया, जिसमें लिखा था“यदि जाने की इच्छा हो तो खुशी से जाओ, मगर पाँच साल से ज्यादा उधर न रहना । पाँच साल के अन्दर जब भी इच्छा हो, तभी यहाँ लौट आना । इस बात का ख्याल रखना कहीं दोनों तरफ से न जाओ" | पूज्य आचार्य श्री जी ने पालीताणा जाने की अनुमति तो दे दी थी, किन्तु आज मुझे लगता है कि वे बड़े ज्ञानी आत्मा थे। उन्होंने जैसे पूर्व में ही जान लिया था कि मैं चाहकर भी अध्ययन के लिए नहीं पहुंच सकता और दूसरी बात यह कि वे स्वयं भी मुझे अपने से दूर नहीं रखना चाहते थे, किन्तु मेरी उत्कृष्ट इच्छा देखकर आदेश दे दिया था। इधर अमृतसर श्रीसंघ को जब हमारे गुजरात की ओर विहार का पता चला तो संघ के प्रमुख व्यक्तियों ने हमसे स्थिरता की विनती की और मुझसे कहा कि आप आज्ञा पत्र देखिए, उससे साफ पता चलता है कि आपको भेजने की उनकी जरा भी इच्छा नहीं है। यदि उनकी इच्छा होती तो स्पष्ट लिखते कि अमुक-अमुक साधु को साथ लेकर पालीताणा जाओ।” जब मैंने सबका विशेष आग्रह देखा तो कहा, आप सभी चिन्ता न करें, मैं पहले यहां से महाराज साहब के श्री चरणों में हाजिर हो जाऊंगा फिर वे जैसी आज्ञा देंगे वैसा ही करूँगा। “मैं गुरुदेव के पास पहुंचा और विनम्र निवेदन किया कि मेरे पढ़ने जाने के विषय में आपकी क्या आज्ञा है? पूज्य गुरुदेव ने लगभग वही जवाब दिया जो अपने आज्ञा पत्र में लिखा था। आज्ञा पाकर अन्य मुनिगण के साथ अम्बाला तक पहुँचा कि मुनि राम विजयजी म. सा. को बुखार आने लगा। उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। परिणामत: अम्बाला में ही चातुर्मास करना पड़ा। चातुर्मास के पश्चात भी परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं थी। गुजरात के बड़ौदा आदि स्थानों से गुरुभक्तों के पत्र आने लगे, जिसमें एक सी ही बात लिखी थी कि आप श्री बरसों बाद गुजरात आ रहे हैं यह समाचार जानकर हमें बहुत आनन्द हुआ, किन्तु, आनन्द से ज्यादा हमें खेद यह हुआ है कि साक्षात कल्पवृक्ष के समान मनवांछित फल देने वाले, ज्ञानसागर, गुण के आगार, परमगीतार्थ युग प्रवर्तक १००८ श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी म. सा. के श्री चरणों में अध्ययन करना छोड़कर आप इधर आने को तैयार हुए हैं। हम आपके दर्शन लाभ से वंचित रहकर भी आपका आचार्य श्री की चरण सेवा में रहना ज्यादा पसंद करते हैं । इसीमें आपका और साथ ही समाज का भी कल्याण है । “जब पंजाब श्रीसंघों की
गुरु विजयानंदः स्मृति के वातायन स
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