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नहीं है । गंदगी जुदा पदार्थ है और अन्न जुदा पदार्थ है । इसी तरह लोहू माँस जुदा पदार्थ है और दूध जुदा पदार्थ है । इस लिए यह कभी सिद्ध नहीं हो सकता है कि, दूध पीने वाला माँसाहारी है।
ईसाई- महाराज ! आपने तो मुझे चक्कर में डाल दिया। इसका जबाब और क्या हो सकता है कि, या तो माँस खाने वाला गंदगी खाने वाला बने या माँस खाना छोड़ दे।
आचार्य श्री- (उसे ठंडा देखकर) अगर तुम्हारा यह पक्का विश्वास है कि, जिसका दूध पीना उसका माँस भी खाना चाहिए तो बच्चा माता का दूध पीता है इसलिए उसे माता का माँस भी, तुम्हारी मान्यता के अनुसार खाना चाहिए।
ईसाई - अरे तौबा ! तौबा ! महाराज आप साधु हो कर क्या कहते हो? माता बच्चे को पालती है। बच्चे का फर्ज है कि, वह जितनी हो सके, उतनी माता की सेवा करे । वह उपकार करने वाली है । उपकार करने वाले पर अपकार करना महानीचता का काम है।
आचार्य श्री - वाह । जब तुम इतना जानते हो, तब जानबुझकर उल्टे रस्ते क्यों चलते हो? हम साधु हैं, इसी लिए तो तुम्हारी भलाई के लिए तुम्हें सच्ची बात कह रहे हैं । केवल बचपन ही में दूध पिलाने वाली माता जब उपकार करने वाली है तब जन्म भर दूध, घी खिलाकर पुष्ट रखने वाले पशु क्या उपकारी नहीं है । माता तो थोड़े ही दिन तक दूध पिलाती है, मगर पशु तो जिन्दगी भर दूध पिलाते हैं। अगर उपकार करने वाली माता की सेवा करना उचित है तो फिर जन्म भर घी, दूध पिलाकर उपकार करने वाले पशुओं की भी सेवा करनी चाहिए या उन्हें मारकर खा जाना चाहिए, अगर इन्साफ कोई चीज है तो तुम खुद ही इस बात को भली प्रकार समझ लोगे।
ईसाई - महाराज ! मैंने आपको तकलीफ दी, क्षमा कीजिए, मगर आपके वचन से मेरा मन बदल गया है । मैं सच्चे दिल से कहता हूँ कि जहाँ तक मेरा वश चलेगा, मैं खुद तो माँस खाऊँगा ही नहीं, दूसरों को भी खाने से रोकूँगा।
फिर वह नमस्कार कर चला गया। सज्जनों ! गम्भीरता और मधुरता के फल आपने देखे । अब मैं आचार्य श्री की निरभिमानता का परिचय कराऊँगा । पंडित हंसराजजी बता चुके हैं कि, आचार्य श्री प्रतिष्ठा या नाम के भूखे न थे। उसी को पुष्ट करते हुए मैं कहूँगा कि, उनको नाम से बिलकुल प्रेम न था । वे हमेशा सत्य से प्रेम करते थे। स्वयं अकेले न थे। उनके साथ पन्द्रह साधुओं का परिवार था। यदि वे अपने आप दीक्षित हो कर फिरते तो क्या कोई उन्हें बाहर निकाल देता? मगर नहीं, उन्हें शास्त्र की रीति पसन्द थी । यदि उन्हें मन: कल्पित रीति ही रखनी
श्री आत्मानंद जयंती
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