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दूर देशों में कीमत होती है । मोती में पानी होता है, इसी लिए उसकी कीमत होती है । जिसमें जितना पानी उतनी ही उसकी कीमत । अहमदाबाद में शान्तिसागर को जवाब देने में ये महात्मा ! तीन थुईवालों को जवाब देने के लिए ये महात्मा, स्थानकवासियों को सम्यक्त्वसार नामक पुस्तक का उत्तर देने के लिये ये महात्मा ! दयानन्द सरस्वती के जैन धर्म पर किये गये आक्षेपों का उत्तर देने के लिए ये महात्मा ! और वैदिक धर्मवालों को जवाब देने के लिए भी ये ही महात्मा ! कितनी विद्वत्ता । कितना प्रताप !
सज्जनों! स्वर्गीय महाराज के ज्ञान गुण से मुग्ध होकर ही श्रीसंघ ने पालीताणे में उन्हें, उनकी इच्छा न होते हुए भी आचार्य पदवी दी थी। इस विषय में भरुच के सेठ अनूपचन्दजी अपनी पुस्तक 'प्रसन्नोत्तर चिन्तामणि' में अच्छा प्रकाश डाल गये हैं। मुझे कहने दीजिये कि, उस जमाने में बड़े भाग्य से लोगों को एक आचार्य मिले थे । प्रसन्नता की बात है कि, भाग्यवश जैनों में आज पाँच छ: आचार्य विद्यमान है । आचार्य श्रीविजय कमल सूरि, आचार्य श्री विजयनेमि सूरि, शास्त्रविशारद श्री विजयधर्म सूरि, योगनिष्ठ श्री बुद्धिसागर सूरि, शास्त्र विशारद श्री कृपाचन्द सूरि । स्वर्गीय एक ही आचार्य महाराज ने अपने समय में अनेक प्रकार से जैन धर्म की उन्नति के कार्य कर जैनों को उपकृत किया है। इसी तरह वर्तमान के आचार्य महाराज भी यथा शक्ति अपने से हो सकें, उतने धर्म की उन्नति कार्य कर लोगों का उपकार करें तो धर्म की इतनी उन्नति हो कि, जिसका अन्दाजा नहीं किया जा सकता है ।
प्रसंगवश मुझे कहना पड़ता है थोड़े समय पहले रतलाम के एक श्रावक का पत्र मुझे मिला है, उसमें लिखा है कि, यहाँ एक ब्रह्मचारी आये हुए हैं। उन्होंने ब्रह्मसूत्र पर " वेदमुनि कृत ब्रह्मभाष्य” नाम का भाष्य रचा है, जो निर्णय सागर प्रेस में छपकर तैयार हो गया है । उसमें सप्तभंगी, स्याद्वाद, नवतत्व आदि का खण्डन किया गया है । और स्याद्धाद पर अड़तालीस दोष लगाये गये हैं । उसका योग्य उत्तर देने की आवश्यकता है । यद्यपि चाहे जैसा उत्तर तो दिया जायगा, भगवान का शासन जयवंत है, कोई न कोई उत्तर जरुर देगा । तथापि इसका योग्य उत्तर योग्य भाषा में वर्तमान आचार्यों में से अथवा पन्यासों में से कोई दे तो वह विशेष महत्व का हो । इस बात को सभी जानते हैं कि एक सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा किसी प्रतिष्ठित पदवीधर की रचना विशेष प्रतिष्ठित होती है ।
सज्जनों ! अब मैं गुरुदेव की गम्भीरता का कुछ परिचय कराऊंगा ! हमें गम्भीरता की
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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