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के लिए सूचना देनी पड़ती है। तुम्हारे हित के लिए तुम धन खर्ची या न ख! यह तुम्हारी इच्छा है, अन्यथा इसमें मानहानि जैसी कोई बात नहीं है और यदि होगी तो उससे तुम्हें कोई हानि नहीं होगी। पुस्तक बनाने वाला मैं मौजूद हूँ। जिसे मानहानि का केस करना होगा वह मुझ पर करेगा। तुम निश्चिन्त रहो, बेफिक्र रहो । अंग्रेज सरकार का राज्य है । जब ऐसे न्यायी राज्य में भी हम अपने धर्म पर आक्रमण करने वालों को, शास्त्रानुसार जबाब देकर, अपने धर्म की रक्षा कर न्याय हक का उपयोग नहीं करेंगे तो कब करेंगे।”
आहा ! कितनी धर्म की लगन ! कैसी हिम्मत ! बेशक दुनिया में साहसी मनुष्य कभी अपने निश्चित विचारों को दूसरों के कहने से, या भय दिखाने से नहीं छोड़ता। वह तो उन्हें पूरा ही करता है । मैं तुम्हें गये बरस स्वर्गीय पूज्य महात्मा का चरित्र सुना चुका हूँ। उससे विशेष मैं कुछ न कहूँगा। मगर मैं इस बार यह बात विषद रूप से बताऊँगा कि वे कैसे साहसी, ज्ञानवान, गम्भीर, निरभिमानी, निर्भय और स्पष्टवक्ता थे।
महाशयों ! स्वर्गीय महात्मा कैसे ज्ञानवान थे, इस विषय में कई वक्ता कह चुके हैं। उनके कथन से तुम्हें उनके ज्ञान का अन्दाजा हो गया है। मैं कुछ कहता हूँ उस पर ध्यान दोगे तो उनके ज्ञान के विषय में पूर्ण रूप से जान सकोगे।
श्री बुद्धिविजयजी (बूटेरायजी) महाराज के पाँच शिष्य थे- श्री मुक्तिविजयजी (मूलचन्दजी) महाराज, श्री वृद्धिविजयजी (वृद्धिचन्दजी) महाराज श्री नीतिविजयजी महाराज, श्री खांतिविजयजी महाराज और पाँचवे स्वर्गीय महाराज, जिनकी जयन्ती मानने का आज हम लाभ उठा रहे है । पाँचवे महाराज की अपेक्षा श्री मूलचन्दजी महाराज प्राय: गुजरात में विशेष प्रसिद्ध हैं
और श्री वृद्धिचन्दजी महाराज को काठियावाड़ में लोग विशेष जानते है। श्री नीतिविजयजी महाराज और श्री खांतिविजयजी महाराज को भी काठियावाड़ी ही प्राय: जानते हैं। खांतिविजयजी महाराज काठियावाड़ में कई स्थानों में दादा खांतिविजयजी तपस्वी के नाम से प्रसिद्ध हैं। मगर पाँचवे महात्मा तो गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, मारवाड़, मालवा, मेवाड़, पंजाब आदि सारे हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध है । इतना ही नहीं विदेशों में- विलायत में भी लोग उन्हें जानते
इसका कारण क्या है? इसका कारण यही है कि, इस सदी में उन्हें जितना ज्ञान था, उतना किसी को नहीं था। इस बात को सभी जानते हैं। जिनमें जितना पानी होता है उतनी ही उनकी
श्री आत्मानंद जयंती
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