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श्री आत्मानंद जयंती
- आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि (यह प्रवचन पंजाब केशरी, युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने सं. १९७१ के ज्येष्ठ सुदि ८ को आत्मानंद जयन्ती के अवसर पर लालबाग (मुंबई) में किया था।)
महाशयो। यद्यपि आज का दिन जयन्ती का है तथापि मैं इसे खुशी का दिन नहीं समझता, अफसोस का दिन समझता हूँ। मनुष्य को दुःख उसी समय होता है, जब किसी ऐसे मनुष्य का वियोग होता है। जिसके कारण उसका लाभ होता है । अथवा यूँ कहिए कि उसी मृत मनुष्य के लिए शोक करते हैं, जिसके कारण उनका कोई मतलब बिगड़ता है। उनका कोई स्वार्थ नष्ट होता है, इस स्वार्थी दुनियाँ में कोई तब तक दुःखी नहीं होता जब तक उसके स्वार्थ में व्याघात नहीं पहुँचता।
सज्जनों ! आप कहेंगे कि, साधुओं को शोक करने की क्या आवश्यकता हैं, मैं कहूँगा शोक-शोक में भी भेद है। एक प्रशस्त होता है और दूसरा अप्रशस्त । अपने निजी नुकसान के कारण जो शोक किया जाता है वह स्वार्थ पूर्ण, और मोहगर्भित अप्रशस्त शोक है । मगर जब एक मनुष्य यह विचार कर शोक करता है कि एक उपकारी महात्मा उठ गये हैं उनकी जगह को अब कौन पूरेगा; तब शोक नि:स्वार्थ और भक्ति पूर्ण प्रशस्त शोक कहलाता है। मैं जिसकी बात कहता हूँ वह अप्रशस्त नहीं प्रशस्त है । अप्रशस्त शोक कर्म बंधन का कारण होता है और प्रशस्त शोक कर्म निर्जरा का। शासन नायक चरम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के समय
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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