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_ विपत्ति में धैर्य, ऐश्वर्य में सहिष्णुता, विकास के समय में स्वयं पर नियंत्रण, सभा में वचन की चतुराई, कभी हार नहीं मानना सुयश के कार्य में रुचि, पढ़ने में निष्ठा आदि गुणों से व्यक्तित्व निखरता है, चमकता है।
__ जैन आचार्यों से व्यक्तित्व को प्रभावशाली, लोकप्रिय और सदाचार सम्पन्न बनाने के लिए २१ सद्गुणों पर विशेष बल दिया है । जैसे—
हृदय की उदारता, प्रकृति की सौम्यता, करूणाशीलता, विनयशीलता, न्यायप्रियता, कृतज्ञता, धर्मबुद्धि, चतुरता आदि ।*
शिक्षा का महत्व विभिन्न विचारकों ने देश-काल की परिस्थितियों तथा आवश्यकता के अनुसार व्यक्तित्व के घटक तत्त्वों पर अनेक दृष्टियों से चिन्तन किया है, उसमें एक सर्वाभौम तत्त्व है शिक्षा, ज्ञान, प्रतिभा।
उष्णता या तेजस्विता के बिना अग्नि का कोई मूल्य नहीं है, उसी प्रकार ज्ञान, शिक्षा या प्रतिभा के बिना व्यक्ति का कोई महत्व नहीं है। विकास के सभी द्वार- शिक्षा से खुलते हैं। उन्नति के सभी मार्ग ज्ञान के राजमार्ग से ही निकलते हैं, अत: संसार के समस्त तिवारकों ने शिक्षा और ज्ञान को सवोपरि माना है । एक शायर का कहना है
सआदत है, सयादत है, इबादत है इल्म।
हकूमत है, दौलत है, ताकत है इल्म। एक आत्मज्ञ ऋषि का कथन है
आयाभावं जाणंति सा विज्जा दुक्खमोयणी जिससे अपने स्वरूप का ज्ञान हो, वही विद्या दुःखों का नाश करने वाली है।
शिक्षा का अर्थ-सर्वांग विकास शिक्षा का अर्थ केवल पुस्तकीयज्ञान नहीं है। अक्षर ज्ञान शिक्षा का मात्र एक अंग है। जैन मनीषियों ने शिक्षा को बहुत व्यापक और विशाल अर्थ में लिया है। उन्होंने ज्ञान और *१. विस्तार के लिये देखें-१. प्रवचन सारोद्धार द्वार-२३८, गाथा-१३५६-५८ २. धर्मसंग्रह अधिकार-१, गाथा-२०
-इसिभासियाई- १७/२
व्यक्तित्व के समग्र विकास की दिशा में 'जैन शिक्षा प्रणाली की उपयोगिता'
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