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गाथा सुनकर यव राजर्षि ने सोचा-एक यह गाथा भी अच्छी है, प्रवचन में काम आयेगी। कम से कम दो तीन प्रवचन तो देने ही होंगे। अत: इसे भी कंठस्थ कर लेना चाहिये।
मुनिवर ने वह गाथा भी याद कर ली । इस प्रकार यव राजर्षि के पास तीन गाथाओं का संबल हो गया। प्राय: ऐसा होता ही है, जिसने कभी भाषण न दिया हो, प्रवचन न किया हो, उसे प्रारम्भ में बहुत कुछ सोचना पड़ता है। इधर-उधर से सामग्री जुटानी पड़ती है। बोलने का क्रम जमाना पड़ता है। फिर भी मन में यह शंका बनी रहती है कि सभा के सामने कोई भूल न हो जाये। इसी चिन्ता में यव राजर्षि को रात में नींद नहीं आयी। कहीं यत्नपूर्वक सहेजी हुई गाथाएं विस्मृत न हो जायें, इसी भय से वे ऊंचे स्वर से रह-रहकर उन तीनों पद्यों का उच्चारण करने लगे।
दूसरी तरफ गर्दभिल्ल राजा बड़ी मुसीबत में था। राजकुमारी अणोलिका के विषय में भविष्यवाणी सुनकर महामंत्री दीर्घपृष्ठ की दृष्टि उस पर टिकी थी। वह किसी प्रकार उसका विवाह अपने पुत्र के साथ कर अपने पुत्र को राजा बनाना चाहता था। यवराजर्षि के गृहस्थाश्रम में रहते तो उसका वश चला नहीं। उनके मुनि बनने के पश्चात् गर्दभिल्ल राजा बना। उसने बहिन अणोलिका के लिये योग्यवर की खोज आरम्भ कर दी। परन्तु इसी बीच मौका पाकर दीर्घपृष्ठ ने अणोलिका का गुप्तरूप से अपहरण करवा लिया और उसे अपनी विशाल हवेली के तलघर में छिपा दिया।
राजा गर्दभिल्ल बहिन के अपहरण से भारी चिन्ता में पड़ गया। प्रिय बहिन को कौन दुष्ट अपहृत कर ले गया, गर्दभिल्ल समझ नहीं पा रहा था। चारों ओर बड़े जोर-शोर से राजकन्या की खोज होने लगी परन्तु स्थिति बिलकुल अस्पष्ट थी, सुराग नहीं लग रहा था। खोजियों की दौड़धूप से महामात्य मन ही मन शंकित था।
उन्हीं दिनों यव राजर्षि का नगर में पदार्पण हुआ। महामात्य को किसी व्यक्ति ने आकर सूचना दी कि यव राजर्षि पधारे हैं और नगर के बाहर किसी कुम्हार की कुटिया में ठहरे हैं । कल नगर में पधारने वाले हैं। कहावत है “चोर की दाढ़ी में तिनका”, चोर का मन प्रति क्षण भयाक्रान्त बना रहता है। वह कभी आश्वस्त नहीं होता। अकस्मात् यवराजर्षि का पदार्पण दीर्घपृष्ठ के लिये कुशंका का हेतु बन गया। उसने सोचा हो सकता है, किसी विशिष्ट साधना द्वारा मुनि को माणुस्सं खु सुदुल्लहं
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