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जीवनपरिचय तथा कार्य विशुद्ध परिणामों से जायमान कर्मोदय सापेक्ष भावों का नाम संयम नहीं इसको भी महाराजश्री खूप जानते थे। भीतर से इस प्रकार पूर्ण आत्मरसनिर्भर होकर आत्ममग्नता के लिए संयमी का-बाह्य में अविनाभावी रूप से रहनेवाला मुनि का नग्नदिगम्बर स्वरूपसुन्दर रूप साधक ही होता है, उसे बाधक समझना केवल कोरा अज्ञानही है। इस आशय को लेकर जो भी प्ररूपणा रही उसमें महाराजश्री का वर्षों का स्वात्मानुभव निहित है।
अंतिम दर्शन शास्त्रों में सामायिक और छेदोपस्थापना का जो भी सूक्ष्म वर्णन आता है, निर्विकल्प शुद्धात्मस्वरूप मग्नता और विकल्पों में से निर्विकल्प शुद्ध स्वरूप में मग्न होने का जो सावधान प्रयत्न, इन दोनों अंतरंग प्रक्रियाओं का जराजर्जर तपसा क्षीण देही महाराज की विदेही सावधान प्रवृत्ति में जो प्रत्यक्ष दर्शन हो पाया वह सुनिश्चित ही अद्भुत, अपूर्व, चैतन्यचमत्कारपूर्ण था। वैसे ही महाराज की निद्रा अत्यल्प थी। अब तो आत्मजाग्रण का सविशेष स्वरूप था । थकावट से निवृत्त होते ही ॐ कार के उच्चारण से जागृति होती थी। उनका संकेत था 'हमें औरों के द्वारा जागने की आवश्यकता ही नहीं है ? ' हम हमारे आत्मा में, हमारे घर में पूर्ण सावधान है ! सातिशय आत्मबल का ही प्रभाव समझना होगा । महाराज अंत तक परमात्मस्मरण कर पाये । णमोकार मंत्र का उच्चारण कर पाये । ॐकार की वही अनुभवरसपूर्ण ध्वनि निकटवर्तियों को अंत तक बराबर सुनने को मिली। भीतर की सावधानता का और कौनसा बाहरी रूप हो सकता है ? दिनांक १८।९।५५ को भाद्रपद शुक्ल बीज रविवार प्रातःकाल ठीक ६ बजकर ५० मिनिट पर महाराजश्री की परमपवित्र निरामय तपस्या से पुनीत आत्मा 'ॐ सिद्धाय नमः' के उच्चारण के साथ अंतिम श्वास ले पायी । मोक्षमार्ग के साधक ने इस पर्याय की अपनी पवित्र जीवनयात्रा इस प्रकार पूरी कर परलोकयात्रा के लिए प्रस्थान कर लिया।
__अब भक्तों के लिए आचार्य महाराज की केवल पुण्यस्मृति और तपस्या-पुनीत देहमात्र शेष थी। विमान बनाया गया। जयनाद से आकाश गूंज ऊठा । श्रीमान् सेठ गोविंदजी रावजी दोशी तथा श्री. सौ. कुमुदिनीबाई ने विमानयात्रा का बहुमान किया। विमानयात्रा के बाद दाहसंस्कार निर्धारित उसी स्थान पर हुआ जहाँ आज भी इस युगपुरुष की चरणपादुकाएँ विद्यमान है। अब ऊपर से संगमरवर की सर्वांगसुंदर छत्री भी बन गयी है। प्रेरणा लेनेवाले भक्तों के लिए चरण आज भी प्रेरणा दे सकते है। लेनेवाला ले सकता है।
तीन भुवन में सार वीतराग विज्ञानता । शिवस्वरूप शिवकार-नमहूँ त्रियोग सम्हारिके ॥
ॐ नमः।
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