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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ महर्षि पूज्यपाद भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उन्होंने व्याकरण शास्त्र की रचना की है, सिद्धांत ग्रंथ की वृत्ति लिखी है। उसी प्रकार आयुर्वेद विषय में भी उनका प्रभुत्व था। उत्तर ग्रंथकारों ने पूज्यपाद की कृतियों का उल्लेख कर उनकी बडी प्रशंसा की है। आचार्य शुभचंद्र ने पूज्यपाद की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि जिनके वचन या ग्रंथ मन, वचन व काय के कलंक को दूर करते हैं उस पूज्यपाद को हम नमस्कार करते हैं। मन, वचन, काय के कलंक को दूर करने के अभिप्राय को कन्नड कवि पार्श्व पंडित ने अपने ग्रंथ में स्पष्ट किया है।
“ सकलोर्वी नुत पूज्यपाद मुनिपं तां पेद कल्याणद्वाकारक दिं देहद दोषमं वितन वाचा दोषमं शब्दसाधक जैनेंद्रदिती जगज्जनद-मिथ्या-दोषमं तत्त्वबोधक तत्त्वार्थदवृत्तियिंदे कलेदं कारूण्य दुग्धार्णवम् ॥"
सर्व लोक के द्वारा पूज्य श्री पूज्यपाद ने कल्याणकारक वैद्यक ग्रंथ से देह के विकार को, वचन के दोष को जैनेंद्र व्याकरण से, एवं चित्त के मिथ्यात्व दोष को तत्त्वबोधक तत्त्वार्थ की वृत्ति सर्वार्थसिद्धि से दूर किया । इस प्रकार पूज्यपाद के द्वारा भी कल्याणकारक नामक वैद्यक ग्रंथ का उल्लेख मिलता है । परंतु समग्र ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता है, त्रोटक प्रकरण कहीं कहीं उपलब्ध होते हैं ।
संपूर्ण ग्रंथ की उपलब्धि न होने पर भी यह निस्संदेह कह सकते हैं कि पूज्यपाद का आयुर्वेद शास्त्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण व प्रामाणिक था । क्यों कि उत्तर काल के अनेक वैद्यक ग्रंथकारों ने पूज्यपाद के ग्रंथ का आश्रय लेकर अपने ग्रंथ की रचना की। कनड, तेलगू, तामिल आदि विभिन्न भाषा के ग्रंथकारों ने भी पूज्यपाद की कृति को आधार बनाकर 'श्रीपूज्यपादोदितं,' 'पूज्यपादने भाषितं' आदि शब्दों का प्रयोग किया है। पूज्यपाद के द्वारा प्रतिपादित प्रयोग नितरां प्रामाणिक है, ऐसा उस समय माना जाता होगा । इसलिए वे पूज्यपाद का नाम लेने में अपना गौरव समझते होंगे।
पूज्यपाद के द्वारा रचित ग्रंथ के कुछ भाग जो उपलब्ध होते हैं, उनका भी संग्रह किया जाये तो कई हजार श्लोक प्रमाण संग्रहित हो सकते हैं। इसके लिए अनेक भाषाओं में प्रकाशित वैद्यक ग्रंथ एवं अप्रकाशित कुछ संग्रहों के अवलोकन की आवश्यकता है।
पूज्यपाद ने कल्याणकारक व शालाक्य तन्त्र के अलावा वैद्यामृतं नामक वैद्यक ग्रंथ का भी निर्माण किया था, शायद यह ग्रंथ कन्नड भाषा में होगा। पूज्यपाद के उत्तरकालवर्ती गोम्मटदेव मुनि ने उक्त वैद्यामृत का उल्लेख अपने ग्रंथ में किया है। इसलिए पूज्यपादाचार्य की कृतियों की प्रतियां अनेक भाषाओं में होंगी, इसमें भी कोई शंका नहीं है।
इस दृष्टि से आयुर्वेद जगत् में पूज्यपाद आचार्य ने भी बहुत बड़ा योगदान दिया है। वे इस विभाग के चमकते हुए सूर्य सिद्ध हुए हैं। उनकी उपकृति के लिए जैन समाज चिरऋणी रहेगा।
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