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२८.
आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ ५. अष्टमी, चतुर्दशी चार पर्व तिथियों के दिन प्रोषधोपवास करना।
६. प्रासुक आहार लेना अर्थात सचिजल, सचित्त फल, सचित्त धान्यादिकों का त्याग यह छट्ठा गृहस्थ धर्म है।
७. रात्रि भोजन त्याग तथा दिन में मैथुन सेवन त्याग यह सप्तम गृहस्थ धर्म है।
८. देवांगना, मनुष्य, स्त्री, पशुस्त्री तथा काष्टपाषाणादिक से निर्मित अचेतन स्त्री प्रतिमा इस प्रकार से चार प्रकार की स्त्रियों का मन वचन काय से नऊ प्रकार से त्याग करना अर्थात ब्रह्मचर्य प्रतिमा का पालन करना यह आठवा धर्म हैं।
९. कृषिकर्म, व्यापार आदि गृहस्थयोग्य आरंभ को त्यागना यह नौवा गृहस्थ धर्म है।
१०. गृहस्थ योग्य ऐसे खेत, घर, धनधान्यादिक दश प्रकार के परिग्रहों का त्याग करना यह दसवा गृहस्थ धर्म है।
११. गृहनिर्माण, विवाह करना, द्रव्योपार्जन करना आदि कार्यों में संमति प्रदान नहीं करना यह ग्यारहवा गृहीधर्म है।
१२. उद्दिष्टाहार का त्याग करना तथा उसके लिये कोई शयनासनादिक देगा तो उसका त्याग करना इस प्रकार संक्षेप से गृहस्थ धर्मों का वर्णन किया है ।
इस प्रकार से गृहस्थ धर्म का आचरण करके इस धर्म के या तो शिखर ऐसे क्षुल्लक पद तथा आर्य पद जब गृहस्थ धारण करता है, तब वह मुनि के समान केशलोच करता है, पाणिपात्र में आहार लेता है, पिच्छि को धारण करता है। इस प्रकार गृहस्थ धर्म का वर्णन स्वामि कार्तिकेय महाराज ने किया है।
मुनि के दस प्रकार है-अर्थात क्षमादि दशधर्म मुनिधर्म है।
१. उत्तम क्षमा-देव, मनुष्य और पशुओं ने घोरोपसर्ग करने पर भी मुनि अपने चित्त को क्रोध से कलुषित नहीं करते हैं। यह उनका उत्तम क्षमा धर्म है।
२. उत्तम मार्दव-जो ज्ञानियों में श्रेष्ठ हैं, जो उत्तम श्रुत ज्ञान के धारक हैं, जो उत्तम तपस्वी हैं तथा गर्व से दूर हैं ऐसे गर्वादिकों का जो विनय करते हैं उनका यह मार्दव धर्म प्रशंसनीय है।
३. उत्तम आर्जव धर्म-जो साधु मन में कपट धारण नहीं करते हैं, मुख से कपट भाषण नहीं बोलते हैं । अपने से उत्पन्न हुए दोष गुरू के आगे नहीं छिपाते हुए कहते हैं उनका उत्तम आर्जव धर्म है ।
४. उत्तम शौचधर्म-जो साधु सन्तोष रूप जल से तीव्र लोभ रूपी मल को धो डालते हैं तथा भोजन में जिनको लम्पटता नहीं हैं वे साधु उत्तम शौच धर्म के धारक हैं।
५. उत्तम सत्य धर्म-जो साधु सदैव जिन वचन ही बोलते हैं, जैन सिद्धान्त प्रतिपादक वचन ही बोलते हैं, पूजा प्रभावना के लिये भी असत्य भाषण नहीं करते हैं, वे साधु सत्यवादी हैं। सत्य भाषण में सर्व गुणों का संचय रहता है।
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