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दिगम्बर जैन पुराण साहित्य इसलिये उनके विषय में कवि ने जो भी लिखा है वह कवि की अन्तर्वाणी के रूप में उसकी मानस-हिमकन्दरा से निःस्तृत मानों मन्दाकिनी ही है। प्रसङ्ग पाकर आचार्य रविषेण ने विद्याधर लोक, अन्जनापवनञ्जय, हनूमान तथा सुकोशल आदि का जो चरित्र चित्रण किया है, उससे ग्रन्थ की रोचकता इतनी अधिक बढ गई है कि ग्रन्थ को एकबार पढना शुरू कर बीच में छोडने की इच्छा ही नहीं होती।
____ पद्मचरित की भाषा प्रसाद गुण से ओत प्रोत तथा अत्यन्त मनोहारिणी है। वन, नदी, सेना, युद्ध आदि का वर्णन करते हुए कवि ने बहुत ही कमाल किया है । चित्रकूट पर्वत, गङ्गा नदी, तथा वसन्त आदि ऋतुओं का वर्णन आचार्य रविषेण ने जिस खूबी से किया है वैसा तो हम महाकाव्यों में भी नहीं देखते।
___इसके रचयिता आचार्य रविषेण हैं। अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख इन्होंने इसी पद्मचरितके १२३ वे पर्व के १६७ वे श्लोक में इस प्रकार किया है
'आसीदिन्द्रगुरोर्दवाकरयतिः शिष्योऽस्य चाहन्मुनि
तस्माल्लक्ष्मणसेनसन्मुनिरदः शिष्यो रविस्तु स्मृतम्'। अर्थात् इन्द्र गुरु के दिवाकर यति, दिवाकर यति के अर्हन् मुनि, अर्हन्मुनि के लक्ष्मणसेन और लक्ष्मणसेन के रविषेण शिष्य थे।
इस पद्मपुराण की रचना भगवान महावीर का निर्वाण होने के १२०३ वर्ष ६ माह बीत जाने पर अर्थात् ७३४ विक्रमाब्द में पूर्ण हुई है।
हरिवंश पुराण आचार्य जिनसेन का हरिवंशपुराण दिगम्बर सम्प्रदाय के कथा साहित्य में अपना प्रमुख स्थान रखता है। यह विषय-विवेचना की अपेक्षा तो प्रमुख स्थान रखता ही है, प्राचीनता की अपेक्षा भी संस्कृत कथा ग्रन्थों में तीसरा ग्रन्थ ठहरता है। पहला रविषेण का पद्मपुराण, दूसरा जयसिंह नन्दी का वराङ्गचरित
और तीसरा यह जिनसेन का हरिवंश । यद्यपि जिनसेन ने अपने हरिवंश में महासेन की सुलोचना कथा तथा कुछ अन्यान्य ग्रन्थों का उल्लेख किया है परन्तु अभीतक अनुपलब्ध होने के कारण उनके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। हरिवंश के कर्ता-जिनसेन ने अपने ग्रन्थ के प्रारम्भ में पार्श्वभ्युदय के कर्ता जिनसेन स्वामी का स्मरण किया है इसलिये इनका महापुराण हरिवंश से पूर्ववर्ती होना चाहिये यह मान्यता उचित नहीं प्रतीत होती, क्योंकि जिस तरह जिनसेन ने अपने हरिवंश पुराण में जिनसेन (प्रथम ) का स्मरण करते हुए उनके पार्वाभ्युदय का उल्लेख किया है उस तरह महापुराण का नहीं । इससे विदित होता है कि हरिवंश की रचना के पूर्वतक जिनसेन (प्रथम) के महापुराण की रचना है इसलिये तो वह उनके द्वारा पूर्ण नहीं हो सकी, उनके शिष्य गुणभद्र के द्वारा पूर्ण हुई है।
___ हरिवंश पुराण में जिनसेनाचार्य बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान् का चरित्र लिखना चाहते थे परन्तु प्रसंगोपात्त अन्य कथानक भी इसमें लिखे गये हैं। यह बात हरिवंश के प्रत्येक सर्ग के उस पुष्पिका वाक्य से सिद्ध होती है जिसमें उन्होंने 'इति अरिष्टनेमि पुराणसंग्रहे' इसका उल्लेख किया है। भगवान्
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