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श्री धवलसिद्धान्त ग्रंथराज
१०९ “ आयु आदि प्राणों को धारण करना जीवन है। वह अयोगी के अंतिम समय से आगे नहीं पाया जाता, क्योंकि सिद्धों के प्राणों के कारण भूत आठों कर्मों का, प्रभाव है । इसलिये सिद्ध जीव नहीं है अधिक से अधिक वे जीवित पूर्व कहे जा सकते हैं। सिद्धों में प्राणों का अभाव अन्यथा बन नहीं सकता। इससे ज्ञात होता है कि जीवत्व पारिणामिक नहीं है किन्तु वह कर्म के विपाक से उत्पन्न होता है क्योंकि जो जिसके सद्भाव और असद्भाव का अविनाभावी होता है वह उसका है। ऐसा कार्यकारण भाव के ज्ञाता कहते हैं। ऐसा न्याय है। इसलिये जीव भाव औदायिक है, यह सिद्ध होता है। तत्त्वार्थसूत्र में जीवत्व को पारिणामिक कहा है, वह प्राणों को धारण करने की अपेक्षा से नहीं कहा है, किन्तु चैतन्य गुण की अपेक्षा से वहां वैसा कथन किया है। इसलिये वह कथन भी विरोध को प्राप्त नहीं होता । चार अघाति कर्मों के उदय से उत्पन्न हुआ असिद्धत्व औदायिक भाव है। वह दो प्रकार का है-अनादि अनन्त और अनादि-सान्त इसमें से जिसके असिद्ध भाव अनादि अनन्त हैं वे अभव्य हैं और जिनके दूसरे प्रकार का है वे भव्य जीव हैं। इसलिये भव्यत्व और अभव्यत्व में भी विपाक प्रत्ययिक ही है। असिद्धत्व का अनादि-अनन्तपना और अनादि-सान्तपना निष्कारण है, यह समझकर इनको तत्त्वार्थसूत्र में पारणामिक कहा है। [धवल, पु. १४, पृ. १२-१४]
__श्री वीरसेन आचार्य को गणित पर भी पूर्ण अधिकार था। विभिन्न भिन्न राशियों में जहां पर अंश नवोत्तर क्रम से और छेद (हर) द्विगुण क्रम से होकर जाते है उन विभिन्न राशियों के मिलाने (जोड़ने ) के लिये करण सूत्र (Formula) दिया है जो अन्यत्र नहीं पाया जाता है।
___ "इच्छित गच्छ का विरलन राशि के प्रत्येक राशि एक को दूना कर परस्पर गुणा करने से जो ऊत्पन्न हो उसकी दो प्रतिराशियां स्थापित कर उसमें से एक उत्तर (चय) सहित आदि राशि से गुणित कर इसमें से उत्तर गुणित इच्छा राशि को उत्तर व आदि संयुक्त करके घटा देने पर जो शेष रहे, उसमें आदिम-छेद के अर्ध भाग से गुणित प्रतिराशि का भाग देने पर इच्छित संकलना का प्रमाण आता है।
"इच्छां विरलिय गुणिय आण्णोण्णगुणं पुणो दुपडिरासिं काऊण एक्क रासि उत्तर जुद आदिणा गुणिय ॥ [धवल, पु. १४, पृ. १९६ ]
"उत्तर गुणिंदं इच्छं उत्तर आदीए संजुदं अवणे । सेसं हरेज पडिणा आदिम छेदद्धगु णिदेण । [धवल, पु. १४, पृ. १९७]
जैसेः-२२ + ३४+४+११ १६इन छः विभिन्न संख्याओं का जोड़ना हैं यहां पर इच्छित गच्छ ६ है। इसका विरलन कर प्रत्येक के ऊपर दो दो रख कर परस्पर गुणा करने से (१२३३१३)२६ अर्थात ६४ आता है। उसकी दो प्रति राशियां स्थापित कर ६४ ६४ का उनमें से एक राशि (६४) को उत्तर सहित आदि राशि (९+२२ = ३१) से गुणित कर (६४ ४ ३१ = १९८४ ) में से उत्तर (९) गुणित इच्छा (६)(९४६ = ५४ ) को उत्तर (९) आदि (२२) संयुक्त करके (५४ +९+ २२ = ८५) घटा देने पर जो शेष रहे (१९८४ - ८५ = १८९९)
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