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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ यह रेखा आगे त्रिकोण चतुष्कोण आदि विविध आकार रूप रेखाओं के माध्यम से बन जा सकती है। फलतः सभी आकारों का माध्यम गतिस्थिति है और गतिस्थिति का माध्यम धर्म और अधर्म द्रव्य है।
निष्कर्ष यह सामने आगया कि किसी प्रकार का आकार कृत्रिम हो, या अकृत्रिम हो। पुद्गल परमाणुओं स्कन्धों, या आत्मप्रदेशों से क्रिया रूप होने तथा यथा स्थान क्रिया रुकने रूप परिणमनसे बनते है अतः सिद्ध है कि संसारके समस्त प्रकार के आकार प्रकार या नर-नारकादि पर्याय रूप जीव प्रदेशों का परिणमन बिना धर्म अधर्म द्रव्य के नहीं बना।
जिनका इतना विशाल कार्य जगत के सामने हो और कोई अज्ञानी इसके बाद भी उन द्रव्यों की सत्ता को न माने तो यह उसका अज्ञान भाव ही कहा जायगा ।
लोक अलोक का विनाश सिद्ध जीवों की लोकाग्र में स्थिति इन द्रव्यों के आधार पर है । ये दोनों द्रव्य स्वयं क्रियावान् नहीं है फिर भी गमन करने व रुकने में इनकी सहायता है। फलतः ये उदासीन कारण है।
आकाश द्रव्य यद्यपि यह भी रूप-रस-गन्ध-स्पर्श रहित है, अमूर्त है, एक है पर अनन्त प्रदेशी द्रव्य है । यह भी अनंतानंत अगुरुलघु गुणों की हानि-वृद्धि से परिणमनशील द्रव्य है ।
समस्त द्रव्यों का अवगाहन इसी द्रव्य में है जहाँतक जितने आकाश में जीवादि पाँच द्रव्य पाए जाते हैं वह लोकाकाश और जहाँ मात्र आकाश है वह अलोकाकाश कहलाता है।
ये पाँच द्रव्य अपना जैसे अस्तित्व रखते है उसी प्रकार ये बहु प्रदेशी है इसीलिए उन्हें ‘अस्तिकाय' शब्द द्वारा बोधित करते हैं । जहाँ अस्ति शब्द अस्तित्व का बोधक है वहाँ सभी शब्द काय (शरीर) की तरह 'बहु-प्रदेशित्व' का प्ररूपक है।
जीव द्रव्य एक चेतन द्रव्य है। शेष चार अचेतन हैं। पुद्गल द्रव्य मात्र मूर्तिक है शेष चार अमूर्तिक हैं । पुद्गल रूपी है । जीव अरूपी भी है अपने स्वभाव से पर सकर्म दशा में कथंचित् रूपी भी कहा जाता है।
काल द्रव्य इन पांच अस्तिकायों के सिवा एक काल द्रव्य है। यह भी अमूर्तिक, अरूपी, अचेतन है तथापि यह एक प्रदेशी द्रव्य है । ऐसे एक एक प्रदेश में स्थित कालाणू लोकाकाशप्रदेश प्रमाण असंख्य है। कालद्रव्योंका परिणमनमे सभी द्रव्यों के परिणमन में व्यवहार निमित्त है। प्रत्येक पदार्थ का परिणमन चाहे गत्यागत्यात्मक हो या अन्य प्रकार हो समय की सहायता के बिना हो नहीं सकता यही काल द्रव्य के अस्तित्व का प्रमाण है। कालद्रव्य अस्तित्व रूप होकर भी काय रूप (बहु प्रदेशी) नहीं है किंतु एक प्रदेशी असंख्य द्रव्य है इसीसे इसकी गणना अस्तिकाय में नहीं की गई।
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