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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ की भीड इकट्ठी हो गई और वे कहने लगे कि ये जैन लोग आज इस गरीब को मार डाल रहे हैं। व्यर्थ में भगवान् की पूजा का ढोंग रच रहे हैं । इतने में विष का गहरा असर होने से उसे एक चक्कर आया जिसे देख कर ऐसा लगा कि अब यह नहीं बचेगा। कुछ क्षण बाद दूसरा चक्कर आया। उस समय अभिषेक का गंधोदक उसके शरीर पर लगाया, उसके क्षण बाद तीसरा चक्कर आ रहा था, जिसे लोग मृत्यु का चक्कर ही समझ रहे थे। इतने में जिनेंद्र भगवान् के अभिषेक के गंधोदक का शरीर से स्पर्श होते ही तत्काल उसका विष उतर गया । सहज ही अन्य मतानुयायी बहुत प्रभावित हुए। आज तक भी लोग जिन भगवान् की श्रद्धा की महिमा का बडे आदर भाव से स्मरण करते हैं।
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