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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ बैरिस्टर सा० को प्रायश्चित्त शास्त्र के अध्ययन पर २२ प्रश्न थे जिसका समाधान वे पहिले जैन विद्वानों से कर चुके थे तथा ७८ प्रश्न ऐसे थे जिनका समाधान उन्हें प्राप्त न हो सका था। वे चाहते थे इन प्रश्नों को आचार्यश्री के पास रखा जाय और उनका समाधान प्राप्त किया जाय ।
उन्हों ने मुझ से इस संबंध में सहायता देने की बात कही । वे चाहते थे कि मैं पहिले उनके संबंध की भ्रान्त धारणा मिटाकर अनुकूल वातावरण बना दूं ताकि महाराजश्री से उन्हें अवश्य उत्तर अपने प्रश्नों का मिल जाय ।
मैं पहिले आचार्य महाराज के पास गया तो बाहिर से ही सुना कि एक ब्रह्मचारी बैरिस्टर सा० की गलत आलोचना कर आचार्यश्री को उनके संबंध में भ्रांति उत्पन्न कर रहा है। मेरा माथा ठनका । थोडा रुककर जब ब्रह्मचारिजी चले गये मैं पहुंचा और मैंने निवेदन किया की बैरिस्टर सा० आपके दर्शन को आए हैं और उनकी कुछ जिज्ञासाएँ हैं जो वे शिष्य भाव से पूछना चाहते हैं। आचार्यश्री ने कहा कि वे विलायत सैर करने जा रहे हैं वहां मांसाहारी होटलों में भोजन करते हैं। मुंबई में भी होटलों में ऐसा करते देखे गये। उन्हें धर्म के प्रति आस्था नहीं तो वे यहां क्यों आये हैं ? कुछ समाज से खर्च हेतु चंदा जमा करने आये होंगे ?
महाराज के उक्त कथन से मैं समझ गया कि उन्हें ये बातें बताई ही गई हैं। मेरे द्वारा उक्त बातों का खण्डन कर जब यथार्थ स्थिति बताई गई तब उन्हें आश्चर्य हुआ। उनका समाधान हुआ । उन्होंने ब्रह्मचारी को बुलाया और मेरा सामना कराया। ब्रह्मचारीजी सटपटाने लगे और बोले मैंने ऐसा सुना था।
आचार्य श्री कडक कर बोले अभी आपने कहा था कि मुंबई में हमने उन्हें मांसाहारी होटलों में खाते देखा है अब कहते हो सुना है। गुरु के सामने मिथ्या भाषण कर पराई झूठी निंदा करते हो । क्या तुम मुंबई में उस होटल में गए थे ? यदि गए थे तो तुम क्या करने गए थे ? ब्रह्मचारीजी कुछ उत्तर न दे सके।
आचार्य श्री ने ब्रह्मचारी को मिथ्या भाषण व मिथ्या प्रवाद के लिए प्रायश्चित्त दिया । अब वातावरण सही था । मैंने बैरिस्टर सा० से चलने का आग्रह किया । वे गए सभी साधुओं की वन्दना करते हुए आचार्य श्री के पास गए । वन्दना के पश्चात् अपने प्रश्न रखे ।।
आचार्य श्री द्वारा वह कहने पर कि प्रायश्चित ग्रन्थ तो गृहस्थ के स्वाध्याय के नहीं है। अतः आप इतना समाधान करके क्या करोगे ? बैरिस्टर सा० ने महाराजश्री की बात स्वीकार की तथा निवेदन किया कि कालदोष से आजकल गुरुओं का अभाव है तब ग्रंथ रखे जीर्ण होगे, कोई स्वाध्यायवाला नहीं रहेगा तो उनका प्रचार प्रसार रुक जायगा ।
महाराज ने उनकी बात मान ली और प्रश्नोंका यथोचित समाधान किया। कुछ आगम प्रमाण से कुछ गुरु परंपरा से प्राप्त पद्धति से । बैरिस्टर सा० बहुत प्रसन्न मुद्रा से वहां से निकले और जबलपुर को चले गए। वहां भी श्री १०८ आचार्य सूर्यसागरजी के पुण्य दर्शन कर वहांसे मुंबई जाकर इंगलेंड चले गए।
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