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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी, स्व. सरसेठ हुकमचंदजी, बैरिस्टर चंपतरायजी आदि प्रसिद्ध विद्वान् श्रीमान् व धीमान् इस मध्यकाल में कटनी पधारे।
कितने उत्साह में, कितने उल्लास में कितनी धार्मिक भावना व उसके पुण्य वातावस्ण में यह चातुर्मास पूर्ण हुआ वह अभूतपूर्व आनंद लेखनी से बाहिर था ।
इसी चातुर्मास के पुण्यावसर पर इस अधम की विपरीत धारणाएँ समाप्त हुई । घोर विरोध के भाव रहने पर, विपरीतता भेजने पर भी उत्तम होनहार पूर्ण सौभाग्य अलग किलकिला रहा था, और वह सामने
आया। इन दिनों संघ के सान्निध्य में उत्तम स्वाध्याय हुआ, ज्ञान प्रगति के साथ आचार्य श्री ने मुझे व्रत देकर पवित्र किया और मेरा जीवन सफल हो गया ।
ऊखट वृक्ष फला फूला कटनी चातुर्मास में एक दिन एक धर्मात्मा श्रावक सेतूलालजी के घर जिनका घर छात्रावास के सामने ही है महाराजजी का आहार हुआ । पश्चात घर में स्थान की कमी से वे छात्रावास के प्राङ्गण में एक उखटे हुए आम वृक्ष के नीचे महाराज को चौकी पर बैठा कर उनका पूजन करने लगे।
मैंने देखा तो उन पर व्यंग किया कि लालाजी आप बडे धर्मात्मा है, पंचाश्चर्य होंगे। लालाजी बोले हमारी भक्ति यदि सच्ची होगी तो उनके होने में आश्चर्य नहीं ।
छह माह बाद जब वैशाख मास आया तो लोग यह देख कर हैरान थे कि उस वृक्ष की जो सूख गया था एक शाखा जिसके नीचे महाराज श्री की पूजा की थी मात्र वह हरीभरी फूली और फली है, शेष वृक्ष सूख गया है । और उसी साल फिर वह गिर गया।
यह एक अतिशय था जो मेरे व्यंग का करारा उत्तर था ।
चातुर्मास की विदाई पर ५००० जनता का समूह एकत्रित था । जैनतर भाई भी बडी संख्या में थे, सब चातुर्मास से बहुत आनंदित थे, अतः विदाई के समय सभी नरनारियों के आंखों में आंसुओं की धार थी-केवल निर्मल नेत्र में तो आचार्य श्री के वहां विमलता और वीतरागता झलक रही थी। ऐसे दुःखद वातावरण में अपने को निश्चल रखना भी महापुरुषों का कार्य है, सामान्य जन का नहीं।
छोटे मोटे और भी अनेक तथ्यपूर्ण अतिशय देखने में आए पर हम उन सब का यहाँ उल्लेख नहीं करना चाहते । इसका कारण यह है कि इस युग के नरनारी अतिशयों पर घोर अविश्वास करते हैं अतः उनकी चर्चा न करना ही श्रेयस्कर है । संघ जबलपुर की ओर रवाना हुआ। मार्ग में सेवा करने का मुझे भी अवसर प्राप्त हुआ।
ललितपुर चातुर्मास में आचार्य श्री ने सं. १९८६ में ललितपुर चातुर्मास किया । इस चातुर्मास में सिंह निष्क्रीडित व्रत की आराधना की। मैं सपरिवार ललितपुर गया उस समय महाराज के ८ उपवास थे तथा पारणाबाद ९ उपवास
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