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विचारवंतों के दृष्टि में महाराज कहे 'कहते जाओ वक्तव्य तुम्हें तो देना है। भाव पूर्ण कविता पुरुषार्थ से बढो न पीछे रहना है' ॥७॥ आशिस मिला उत्साह धीर से कविता करते आया हूँ। स्वागत गीत, भजन, समयोचित रचना से रिझाते आया हूँ ॥८॥ उनिससो सत्तर साल मुनि आर्यनंदिजी फलटण थे। वर्षा योग मुनिराज बिराजे हमने प्रभु गुण गाये थे ॥९॥ वैराग चौबीस तीर्थंकर को किन कारणों से है प्राप्त हुआ। फलटण समाज सुन मुग्ध हुई औ टेप रेकार्ड तो करही लिया ॥१०॥ फलटण समाज ने 'काव्यभूषण' पदवी से अलंकृत करही दिया । भाग्य जगा आचार्य आशिस से 'संगीतप्रवीण' का मान दिया ॥११॥ गुरु आशिस से स्नेह समाज का काव्य निधि भी पायी है। श्रद्धांजलि गुरुवर 'शांति 'चरणों में अर्पित जयमाला गायी है ॥१२॥
तुमने कीन्हा है सत्यपथ प्रदर्शन परमपूज्य, चारित्रचूडामणि, त्यागमूर्ति, आध्यात्मिक संत, स्वर्गीय १०८ पूज्य श्री शांतिसागरजी के चरणों में श्रद्धांजलि समर्पण रचियता-हास्यकवि श्री हजारीलाल जैन 'काका' पो. समरार, जि. झांसी
परम पूज्य आचार्य शांतिसागर को शत शत वंदन, श्रद्धा सहित युगल चरणों में श्रद्धांजलि समर्पण ॥ध्रु०॥ वर्तमान में श्रमण संस्कृति को गतिमान बनाया, सुप्त हुई निग्रंथ दशा को पौरुष से चमकाया, बन महान् योगी दुनिया में कीन्हा सत्य प्रदर्शन, श्रद्धा सहित युगल चरणों में श्रद्धांजलि समपेण ॥१॥ जड चेतन से प्रथक, जीव का नहीं देह से नाता, जड पर शासन किया आपका पौरुष यही बताता,
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