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| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ६० :
पारसोली के रावत लालसिंहजी ने भी व्याख्यान सुना । विहार के एक दिन पहले उदयपुर में राज्य की ओर से इस प्रकार की घोषणा कराई गई
"काले चौथमलजी महाराज विहार करेगा सो अगतो राखजो। नहीं राखेगा
तो सरकार को कसूरवार होवेगा।" उदयपुर से विहार कर आपश्री डबोक पधारे तो वहाँ करजाली के महाराज साहब लक्ष्मणसिंहजी आपके दर्शन करके धन्य हुए।
फिर अनेक गाँवों में होते हुए आप रतलाम पधारे । उदयपुर श्रीसंघ की चातुर्मास की विनती स्वीकार की। . वहाँ से सैलाना स्टेट पधारे तो वहां के सरकार दिलीपसिंहनी ने तीन व्याख्यान सुने और वहीं चातुर्मास करने की प्रार्थना की। लेकिन चातुर्मास उदयपुर में निश्चित हो चुका था इसलिए उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं हुई।
पिपलोदा में आपके पधारने पर 'श्री जैन महावीर मंडल' और एक 'जैन पाठशाला' की स्थापना हई। पिपलोदा दरबार ने भी व्याख्यान श्रवण किया।
जावरा, मन्दसौर आदि गांवों में होते हुए आप बड़ी सादड़ी (मेवाड़) पधारे । महाराज साहब के सार्वजनिक प्रवचन हो रहे थे। भारी संख्या में हिन्दू-मुस्लिम-बोरा आदि बैठे थे। उसी समय राजराणा दुलहसिंहजी कार में बैठकर कहीं जा रहे थे। उन्होंने बहत बड़ी संख्या में लोगों को एक स्थान पर शांतभाव से बैठे देखा तो ड्राइवर से पूछा
"यह लोग यहां क्यों बैठे हैं ? यह आवाज किसकी आ रही है ?"
"यह जैन दिवाकरजी श्री चौथमलजी महाराज की आवाज है। उनका प्रवचन जनता सुन रही है।"-ड्राइवर ने बताया ।
राजराणा साहब ने तुरन्त कार पीछे मुड़वाई और सभा स्थान पर लोगों के समूह के बीच प्रवचन सुनने बैठ गए। अचानक अपने बीच में राजराणा को देखकर लोग विस्मित रह गए।
राजराणा ने महलों में भी आपका व्याख्यान करवाया और अभयदान का पट्टा दिया। उनके परिवारीजनों, सगे-सम्बन्धियों एवं कर्मचारी, छड़ीदार, हजरिए आदि ने भी बहुत से त्याग किये।
राजराणा दुलहसिंहजी आपके प्रवचनों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने टैक्स देकर मांस बेचने वाले कसाई को भी दुकान खोलने की भी आज्ञा न दी।
लूणदे के रावतजी जवानसिंहजी और उनके सुपुत्र ने आपके प्रवचन से प्रभावित होकर अभयदान का पट्टा दिया।
कानोड़ में वहाँ के रावतजी केशरीसिंहजी ने आपका उपदेश सुनकर अभयदान का पट्टा दिया।
भिण्डर के महाराज साहब भूपालसिंहजी ने तीन प्रवचन सुने और अभयदान का पट्टा दिया। अन्य सरदारों एवं प्रजाजनों ने भी बहुत से त्याग किए।
बम्बोरे के रावत मोड़सिंहजी ने आपकी सेवा में अभयदान का पट्टा दिया । इनके सरदारों एवं प्रजाजनों (लगभग १७ लोगों) ने अनेक नियम लिए।
कुरावड़ के रावत बलवन्तसिंहजी और बाठरड़े के रावत दिलीपसिंहजी ने प्रवचनों से
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