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|| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
___ एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ५०
आपने श्रावकों का निवेदन स्वीकार किया। चर्मकार बस्ती में दो प्रवचन फरमाए । चमकारी प्रभाव हआ। चर्मकारों की एक विशेष मीटिंग (सभा) हई। दीर्घदृष्टि से विचार किया गया और निम्न इकरारनामा लिखा गया
पंच चमार मेवाडा केसूर यह इकरारनामा लिखने वाले चमार पंच सुनीवाला दुर्गाजी चौधरी, सकल पंच मालवा तथा खाचरोदवाला घासी जी तथा सकल पंच बड़लावदावाला बालाजी तथा बडनगर के सरपंच मोतीजी यह चार गाँव के पंच केसूर (धार जिला) में एकत्र हुए। चंपाबाई के यहाँ गंगाजल हुआ था। इस समय पूज्यश्री १००८ श्री मन्नालालजी महाराज की संप्रदाय के सुप्रसिद्ध वक्ता श्री १००८ श्री चौथमलजी महाराज के सदुपदेश से यह प्रस्ताव किया है कि जो मांस खायेगा या दारु (शराब) पीयेगा उसका व्यवहार पंच तोड़ देंगे। जाति से छह महीने बन्द रहेगा और ११) २० दंड देना होगा। इस इकरारनामे के अनुसार महीदपुर, उज्जन, खाचरोद, सुखेड़ा, पिपलोद, जावरा, मन्दसौर, चित्तौड़, रामपुरा, कुकडेश्वर, मनासा आदि ६० गाँवों में पालन किया जायेगा।
तिथि फाल्गुन वदी ३, सं० १९७८, ता० १३-२-२२ निशानी अंगूठा-पंच लूनीवाला-दुर्गाजी
-खाचरोदवाला-घासीजी -बड़लावबावाला-बालाजी पटेल
-बड़नगर वाला-मोतीजी पटेल
-पटेल भेरू केसूर-रूपा पन्ना, केसूर इस प्रकार ६० गांवों के चमारों ने मांस-मदिरा का त्याग कर दिया।
ये लोग अपनी प्रतिज्ञा में दृढ़ रहे । शराब के ठेकेदार को हानि हुई तो उसने सरकारी अधिकारियों से शिकायत कर दी। उनके स्वार्थ की भी हानि थी। अधिकारियों ने चमारों को डराया, धमकाया यहाँ तक कि एक चमार के मुंह में शराब की बोतल जबरदस्ती उड़ेल दी, फिर भी उसने नहीं पी, उगल दी। एक स्वर से सभी चमारों ने विरोध किया
"हम धमकियों से डरने वाले नहीं है। आप हमारी गरदनों पर तलवार चलवा दें, फिर भी हम गुरुदेव के सामने ली हुई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ेगे।" ।
कितना प्रभाव था गुरुदेव की वाणी में कि प्रतिज्ञा लेने वाला मेरु के समान अटल हो जाता था।
केसूर से आप इन्दौर होते हुए देवास पधारे। यहाँ के नरेश (जूनियर) सर मल्हार राव बाबा साहब ने प्रवचन लाम लिया। वहाँ से आप उज्जैन पधारे । उज्जैन में महावीर जयन्ती उत्सव मनाया गया। इस उत्सव में दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकवासी सभी भाइयों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। जैनों के अतिरिक्त, वैष्णव, मुसलमान, वोरा आदि भी चातुर्मास करने का आग्रह करने लगे। लेकिन आपने स्पष्ट स्वीकृति नहीं दी। वहाँ से आप रतलाम पधारे। रतलाम में मुनि सम्मेलन होने वाला था। इसलिए पूज्यश्री मुन्नालालजी महाराज, पं० रत्न श्री नन्दलालजी महाराज आदि २६ संत विराजमान थे। यहां उज्जैन श्रीसंघ, दिगम्बर जैन श्री राजमलजी, बाबू वंशीधर जी भार्गव, आदि आए। चातुर्मास की प्रार्थना यहाँ स्वीकार हो गई।
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