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________________ श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ । उदार सहयोगियों की सूची : ५६८; श्रीमान श्रीकिशनचन्द जी तातेड़, दिल्ली श्रीमान किशनचन्द जी तातेड़ देहली निवासी श्रीमान स्व० कल्लमल जी तातेड़ के सपुत्र हैं। आप बड़े ही शांत-स्वभाव के सरलात्मा हैं । साध-सन्तों की विशेष सेवा करते रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती नगीनादेवी भी आपकी भाँति सरल हृदया धर्मशीला महिला हैं । आपने तेले, चोले व अठाई आदि तपस्याएं की हैं। आजकल प्रतिमाह चार आयम्बिल करते हैं । आपके चार पुत्र हैं-श्री विजयकुमारजी, निर्मलकुमार जी, धर्मचन्दजी एवं अजयकुमारजी। सभी सुयोग्य तथा सुसंस्कारी हैं। निर्मल कुमार जो तातेड़ श्री किशनचन्दजी तातेड़ के सपुत्र श्री निर्मलकुमार जी तातेड़ एक समाज-सेवी एवं धर्मप्रेमी उत्साही नवयुवक हैं । आप चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट हैं और दिल्ली में अपना व्यवसाय करते हैं । आपका काफी समाजसेवी संस्थाओं से सम्बन्ध है । आप अपने माता-पिता की भाँति साधु-सन्तों की काफी सेवा करते रहते हैं। - स्व. श्री किशनचन्द जो चौरड़िया, देहली देहली के श्रावक शिरोमणी लाला किशनचन्द जी चौरडिया का जीवन सरलता की अनुपम मिसाल रहा है। आप लाला कपूरचन्द जी चौरड़िया जोकि चांदनी चौक बिरादरी के अनेक वर्षों तक प्रधान रहे, के एकमात्र पुत्र थे। अपने पिता की भांति धर्माचरण में सदैव आगे रहे। व्यापार में प्रामाणिक व अनेकों को सहारा देने वाले थे। स्वयं बहुत सादगी से रहते थे, किन्तु दानशीलता में अग्रगण्य थे। हर वर्ष सन्त गणों के दर्शनार्थ सपरिवार यात्रा पर जाते थे। साधु-सन्तों की सेवा का लाभ लेने में कभी पीछे न रहे। जैन दिवाकर जी महाराज साहब के अनन्य भक्तों में से थे । हर सप्ताह व्रत आयंबिल आदि तपस्या भी बराबर करते थे। आपके पुत्र श्री महताबचन्द चौरडिया, पुत्री श्रीमती विजयकुमारी भी उसी प्रकार धर्माचरण, तप संयम की प्रवृत्तियों व दानशीलता में अग्रगण्य है। श्रीमती नगीना देवी चौरडिया आप स्व. लाला किशनचन्दजी चौरडिया की धर्मपत्नी व समाज की अग्रगण्य नेताओं में से हैं। जैन साहित्य व आगमों का ज्ञान अनुकरणीय है। आपको धार्मिक संस्कार माता की गोद से ही मिले । आपकी माता श्रीमती फूलमती जी (धर्मपत्नी लाला धन्नोमल जी सुजंती जौहरी) ने युवावस्था में ही भागवती दीक्षा धारण करली थी और लगभग अर्धशताब्दि तक संयम जीवन का पालन किया । देहली में ही अनेक वर्षों स्थिरावास रहा। धर्मवीर माता के सान्निध्य में उनकी शूरवीर पुत्री ने यहां समाज की सेवा की है। अनेक वर्षों तक आप एस. एस. जैन महिला संगठन सभा की सचिव व प्रधान रहीं। उन दिनों ही धार्मिक प्रवृत्तियों के प्रचार व प्रसार के लिए आप तत्कालीन राजनेताओं राष्ट्रपति स्व. डा० राजेन्द्रप्रसाद जी व प्रधानमन्त्री श्री जवाहरलाल नेहरू जी से मिलती रही है। श्री दिवाकर जी महाराज साहब की आप अनन्य भक्तों में से रही हैं। ज्ञान भी उन्हीं से प्राप्त किया। आपके ज्ञान व अनुभव का सहयोग समाज को बराबर मिलता रहे यही कामना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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